सोमवार, दिसंबर 19, 2011

यादें


  वक़्त के साहिल से
  विचारों  के जाल
   अतीत में फेंक कर ,
 निकाल लेता हूँ
  कुछ डूबती  हुई
 यादें .....

  फिर ....

उन्हें जोड़कर ,
सिलसिलेवार....
और दोहराकर,
बना लेता हूँ मजबूत ,
यादों की हिलती बुनियाद

    और फिर ...


छोड़ देता हूँ विचारों को पुन:
अतीत के गहरे गर्त में
ताकि
ला सकें अपने साथ
किसी भूले बिसरे पल को .
सुनी हैं आज फिर
तल से आती फरियादें ...

"विक्रम"
                             
                                                                           : - :




शुक्रवार, दिसंबर 16, 2011

ब्लोगिंग वार ( तीसरा महायुद्ध )

इन्सटाइन ने कहा था की तीसरे युद्ध का तो पता नहीं मगर चौथा पथरों से लड़ा जायेगा.लेकिन आजकल तीसरे युद्ध की शुगबुगाहट शुरू हो गई है.इस युद्ध में किसी अस्त्र शस्त्र की जरुरत नहीं और ना ही किसी परमाणु या ड्रोन की , ये तो चुपके चुपके लड़ा जा रहा है.

आमतौर पर हर युद्ध के पीछे कोई ना कोई कारण होता है , और ठीक उसी तरह इसके पीछे भी कई कारण है. आज भाषा , राज्य ,धर्म और धार्मिक ग्रंथो के नाम पे लड़ा जाने वाला ये है ब्लोगिंग वार. अगर आपकी भाषा सामने वाले से मिलती नहीं तो आप उसके ऊपर कमेन्ट करते हो ,आपका राज्य ,धर्म सामने वाले से अलग है तो आप उसपे टिक्का टिप्पणी करते हो , सामने वाले के ग्रंथों में कही गई बातों को ब्लॉग में उठाकर बहस खड़ी  करते हो.



मैने कुछ ब्लॉग में पोस्ट पढ़ी तो पाया की ब्लॉगर ने इतना गहन शोध अपने मजहब की पुस्तकों को पढनें में नहीं किया होगा जितना दुसरे मजहब की पुस्तकों में, और वो भी सिर्फ इसलिए , की कुछ मसाला मिले जिसे अपने ब्लॉग में लगा सके . दुसरे के धार्मिक ग्रंथों से अच्छी बातें उठाने की जगह कुछ भर्मित तथ्य उछाल कर हंगामा खड़ा करने वाले कोनसे युद्ध की तैयारी में लगे हैं भगवान जाने .

कमोबेश धार्मिक ग्रंथों में कुछ ना कुछ ऐसा जरुर है जो आज सभी को हजम नहीं होता ,कुछ इसको धार्मिक ग्रंथों से की गई छेड़-छाड़ बतातें हैं , कुछ इसको अपने तर्कों से सही ठहराता है .आज एक ब्लॉगर की एक सवेंदनशील टिप्पणी ,हजारों लोगों में शब्दों की खामोश बहस खड़ी कर देती हैं . निकट भविष्य में येही ख़ामोशी तूफान से पहले की ख़ामोशी सिद्ध होगी . फिर आखिर लोग इस तरह के वक्तव्य देकर कोनसी मंजिल पा लेना चाहते हैं.? क्या प्रसिद्धी के लिए इंसानों को गुमराह किया जा रहा है. ? क्या गुमराह होने वाले लोगों की अपनी कोई राय या सोच नहीं क्या उनके पास अपना दिमाग नहीं.? क्यों लोग ऐसे समाज कंटकों की किसी भी बात को सच मान भ्रमित हो जाते हैं.? किया उन्हें अपने धार्मिक में कहीं बातों पे विश्वास नहीं. ? अगर ऐसा है तो क्यों नहीं "इंसानियत धर्म" को अपनाया जाये , जिसमे आपसी भाईचारे  से नकारात्मक   सोचों को धोया जाये.?

अपने धर्मं को ऊँचा और दुसरे के धर्म को नीचा बताने वालों पहले जरा खुद तो इस ऊँच-नीच से  बाहर निकलों ताकि अपने वजूद से रूबरू हो सको .बस एक बार दुसरे के मजहब की इज्जत कर, और फिर देख ,वो तुझे और तेरे धर्म को कितनी इज्जत बक्सता है.
"विक्रम"

सोमवार, दिसंबर 05, 2011

पिता

घुटनों पर हाथ रखकर उठने वाले रघु चाचा आज हवा से  बातें कर रहे थे । घर से बाज़ार और बाजार से घर के बीच दिनभर दोड़ते रहे । घर के कोने कोने में झांक कर हर एक चीज की कई कई बार तसल्ली कर चुके थे । रसोई के सभी बर्तन साफ करके करीने से सजा दिए गए थे ,गन्दा सिंक भी आज अपने वास्तविक रूप में आ गया था तथा उसके चारों तरफ जमी काई (सिवार) उतर चुकी थी।  घर के आगे बने चबूतरे पर सोने वाला कुत्ता भी आज अपनी मनपसंद जगह पर नहीं सो पाया रघु चाचा ने वहां पर आज अपनी चारपाई डाल रखी थी तथा कुत्ते को पिछवाड़े खड़े एक पेड़ से बांध दिया था।

घर का एकलौता शयन कक्ष आज अपनी पहचान पाकर खुश लग रहा था । रघु चाचा की पिछले 10दिन की मेहनत आज घर के कोने कोने से नजर आ रही थी आज सालभर बाद उनका बेटा नवीन और बहु सुमन महीने भर के लिए शहर से गाँव आ रहे थे। रघु चाचा के बेटे नवीन ने अपनी मनपसंद की लड़की से पिछले साल विवाह कर लिया था। विवाह से ठीक एक दिन पहले रघु चाचा को फ़ोन से इतल्ला करदी थी। उस दिन रघु चाचा बहुत रोये थे , मगर बेटे की ख़ुशी के आगे घुटने टेक दिए और फोन पर ही बेटे को आशीर्वाद देकर पिता होने का फ़र्ज़ पूरा कर दिया था।

वक़्त के साथ साथ रघु चाचा , बेटे द्वारा की गई उपेक्षा को भूल गए और आज बेटे के स्वागत के लिए तैयार होने लगे। निर्मला चाची के देहांत के समय नवीन मात्र 10साल का था ,तब से रघु चाचा ने नवीन को माँ बनकर पाला था । नवीन पच्चीस साल का हो चूका था मगर रघु चाचा उसे आज भी 10 साल का बच्चा समझ खुद उसके लिए खाना बनाते थे । मगर आज रघु चाचा अपनी बहु के हाथ का बना खाना खायेंगे। बरसों बाद पका पकाया खाने को मिलेगा। खाने का ख्याल आते ही रघु चाचा फिर से रसोई में रखी हर सामग्री का मुआयना करते की कहीं कुछ कमी ना रह जाये वरना बहु  क्या सोचेगी।

पूरी तस्सली होने के बाद बाहर चबूतरे पे पड़ी चारपाई पर आकर बैठ गए और बहु के आने के बाद की घटनाओं को मन ही मन सोचकर मुस्कराने लगे। आते ही बहु रसोईघर में घुस गई ,कुछ पलों बाद खाने की महक घर की दीवारें लांघकर चबूतरे पर बैठे रघु चाचा के नथुनों तक जा पहुंची और इसके बाद रघु चाचा एक लम्बी साँस लेकर मुश्कराए और पैर फैलाकर लेट गए।

अचानक बजी फ़ोन की घंटी ने रघु चाचा को यथार्थ के धरातल पर जोर से पटका और उसके बाद आँख मलते हुए अन्दर भागे । फ़ोन का चोंगा उठाते ही दूसरी तरफ से नवीन की आवाज़ आई,  "पापा..." , पापा....वो.., आज सुमन की मम्मी हमारे पास आई हुई हैं , वो अभी चार पांच महीने हमारे साथ ही रहेंगी, .. तो.. इसलिए , इस बार हम नहीं आयेंगे पापा , आप अपना ख्याल रखिएगा । इतना कहकर दूसरी तरफ से बिना कुछ सुने फ़ोन काट दिया।


विक्रम

रविवार, नवंबर 27, 2011

गाँवों की फेसबुक (ताश)



आजकल ताशबूक का चलन पहले की अपेक्षा काफी बढ़ गया है आज जिस तरह क्रिकेट सभी खेलों पर हावी हो रहा है उसी तरह ताश भी बाकि खेलों जैसे चोपड़,लूडो,शतरंज पर हावी हो चुकी हैं. चोपड़ बहुत पुराना खेल है , जो राजा महाराजाओं के दौर में चरम सीमा पे था , मग़र आज अपना अस्तित्व खो रहा है. मुझे याद है आज से करीब २० साल पहले हमारे गाँव में बुजर्ग लोग बहुत जोश खरोस से दिनभर चोपड़ खेलते थे. वक़्त के साथ साथ हर चीज बदलती है , मगर कुछ का खाली स्वरूप ही बदलता है और वो लम्बे समय तक अपने अस्तित्व में रहती हैं.

इस जद्दोजहद में ताश क खेल अपना अस्तित्व बचाए रखने कामयाब रहा इसका मुख्य कारण है भिन्न भिन्न प्रकार की पारियां जो इसमे खेली जाती हैं. पहले गिनती के तीन या चार खेल ही थे जो अक्सर खेले जाते थे. वक़्त के साथ साथ लोग उन खेलों से बोर होने लगे थे की अचानक एक क्रांति का आगाज हुआ और अनेकों नई नई तरह के खेल खेले जाने लगे

ऐसा नहीं की नए खेल आसमान से टपके थे , वो पहले भी थे ,मगर एक सिमित क्षेत्र में, वक़्त के साथ साथ यातायात के साधनों की बहुतायत ने दूरियों को कम किया और लोग एक दुसरे के जुड़ने लगे. कहते हैं खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है , ठीक उसी तरह हम भी एक दुसरे के रहन सहन , खान-पान से प्रभावित हुए एक दुसरे की देखा देखी परिवर्तन शुरू किये तो जिन्दगी में भी परिवर्तन का दौर चल पड़ा . आज ताश में ऐसे ऐसे नए खेल आ गए हैं की दिनभर उनके पास बैठे रहो मगर फिर भी भेजे में कुछ नहीं आयेगा. पहले के खेलों में रमी,फ़ीस,तीन-दो-पांच,रंग आदि काफी मशहूर थे जिनमे प्राय: दो,तीन या चार जन खेल सकते थे , मगर आज तो अकेला बंदा भी पूरी तन्मयता से खेलता हुआ मिल जायेगा. अब वो क्या खेलता है ये तो पता नहीं मगर जब तक कोई दूसरा निठल्ला ना मिले तो अकेले खेलकर थोडा अभ्यास करने में क्या हर्ज़ है .

गर्मियों में ताश का खेल अपने पुरे यौवन पर होता है ,चाहे कितनी ही गर्मी हो , कितनी ही लू चलें मगर ताश खेलने वाले पूरी श्रर्दा से खेलते हैं. खेल के दौरान घर से काफी बुलावे आते हैं , मगर "आता हूँ , अभी आया , तुम चलो में आता हूँ " कहकर फिर से ताश वंदना शुरू हो जाती है. खेल के दौरान सलाहकारों की भी भरमार रहती है , जो बिना मांगे सलाह की बौछारें फेंकते करते रहते हैं .

इस खेल में साम दाम दंड भेद , सभी हथकंडे अपनाये जाते हैं अपने साथी से गुप्त इशारों में ही हाथ मे पकडे पतों के ब्यौरे का आदान प्रदान हो जाता है कुछ नौसिखिये अक्सर पकडे जाते हैं तो दंडस्वरूप उनको फिर से पत्ते बाँटने जैसी सजा मिलती है. मगर सबकुछ इशारों में ही संभव नहीं होता तो ऐसे हालात में सलाहकारों से सलाह ली जाती हैं जरुरी नहीं की खुद के पास बैठे सलाहकार की मदद ली जाये , आप इशारों में सामने वाले के सलाहकार को भी पटा सकते हैं.
इस खेल का सबसे बड़ा फायदा है आपको किसी मैदान की जरुरत नहीं , बस बैठने भर की जगह मिल जाये तो पूरा दिन आराम से खेल खेल में रुखसत हो जाता है. वो बैठने भर की जगह चाहे ट्रेन,बस,मंदिर,सड़क,घर,खेत कुछ भी हो इस खेल में उम्र और समय कि कोई सीमा नहीं होती,क्योंकि इसमे जिस्मानी ताकत की जरुरत नहीं होती इसलिए आप कैसी भी उम्र और कद काठी के साथी के साथ खेल सकते हैं ..खेलता जा बाजियों पे बाजियां

"विक्रम"

बुधवार, नवंबर 23, 2011

पिता



          पिता ,
         अपनी जड़ों को
         जमीन के सिने में
         पेवस्त कर बनाता है घरोंदा ,
         ताकि ,
         बचा रहे आँधियों से और ,
         सुरक्षित रहे ज़माने की
         बुरी नजर से
         और....
 



जूझता है ताउम्र ,
जीवन के उतार चढ़ाव से,
मां संग घर के रखरखाव में,
और.... ,
लड़ता है ताउम्र,
करता है खबरदार ! वो मेरे बच्चे हैं ,
दुनिया के बच्चों से बहुत अच्छे हैं ,
और..... ,
सर पर हाथ घुमाकर ...
बताता है जीने के उपाय
पलट पलटकर ,
अपने अनुभव की किताबें ,
जो खरीदी थी कुछ खट्टे मिट्ठे
अनुभवों के बदले ,
जिन्दगी से


कहता है ताउम्र,
सुनो बेटे ! ये दुनिया बड़ी बेरहम है ,
कल तुम अकेले हो ,आज भर को हम है,


और....

 
फिर.. ,
पास बैठाकर , सर पर हाथ घुमाकर ...
बताता है जीने के उपाय ,
पलट पलटकर ,
अपने अनुभव की किताबें ,
जो खरीदी थी कुछ खट्टे मिट्ठे

अनुभवों के बदले , जिन्दगी से .

"विक्रम"

सोमवार, नवंबर 21, 2011

वक़्त के अंधड़

नसीहत से सरोबर आवाज ,
पूर्वजों की...,
अकसर आती है..., जो ,
चोकस खड़े है,
आज भी.
उन वीरान खंडहरों के चहुँ और..,
....जिनको सींचा था ,
शाका और जौहरकी ज्वाला से..,
और बचाकर रखा था,
...ताकि सौंप सकें
भविष्य के हाथों में ...
और बचा रहे अस्तित्व ,
मगर आज .....?
लुप्त हो रहा है अस्तित्व ,
इन आँधियों में ,
सुनो ! ,

बुधवार, नवंबर 09, 2011

ठाकुर साहब की बारहवीं


आज ठाकुर साहब की हवेली पे लोगों की बहुत भीड़ थी रिश्तेदारों के साथ साथ गांववाले भी बड़े खुश नजर आ रहे थे हवेली के पिछवाड़े से मिठाइयों की खुशबु तथा मसालों की तीखी महक दूर दूर तक जा कर लोगों को खिंच खिंच कर हवेली ला रही थी सामने के हिस्से में बड़ा सा सामयाना लगा कर उसमे दरियाँ बिछा दी थी कुछ युवा मेहमानों के खाने पीने का जिम्मा संभाल रहे थे , तथा कुछ हलवाइयों के इर्द गिर्द रहकर उनको सामग्री मुहया करवा रहे थे ताकि खाने पीने के सामान की कमी ना हो , आखिर इज्जत का सवाल था कहीं कुछ भी कम हुआ तो परिवार वाले जिंदगीभर ताना देंगे की हमें खाने में वो नहीं मिला , या फिर देर से मिला , ताज़ा नहीं था आदि आदि|

सोमवार, सितंबर 26, 2011

टांग खींचना एक कला







टांग खींचना आजकल उच्च दर्जे की कलाओं में शुमार किया जाता है ये वो संपदा है जो कुछ नसीब के धनी लोगों को विरासत में और कुछ ने अपनी मेहनत से अर्जित की है आने वाले दिनों में इसको जीविका के मुख्य उद्गम के तौर पे देखा जा रहा है एक वक़्त था जब चमचागिरी का बोलबाला था तथा चमचा लोगों का यत्र तत्र सर्वत्र बोलबाला था


आजकल भी येदा कदा नजर आ जातें हैं मगर गुणवत्ता में वो पहले वाला निखरापन नहीं है मगर इसका मतलब ये कतई नहीं है की चमचों का अस्तित्व ही ख़त्म हो गया वो आज भी हमेशा की तरह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं , मगर इस बार उनका मुकाबला "टांग खिंचाऊं" संगठन से है जो अपने इस हुनर की बदोलत तेजी से फलफुल रहा है निकट भविष्य में टांग खींचने की इस कला पर काफी शोध होने है , और MBA जैसे संस्थान भी अपने अध्ययन में इस कला को इज्जत से नवाजेगें इस कला में अभी निपुण लोगों का आभाव है

मगर कोशिश जारी है, और जल्द ही इस विषय में पी.एच.डी की हुई पहली खेप बाजार में आएगी प्राचीन काल मे भी इसके सबूत मिलते हैं उस वक़्त ये कला अपने शैशव काल में थी और अलग अलग रूपों में विधमान थी मगर आज ये जवानी की दहलीज पे कदम रख चुकी है और अपने पुरे शबाब में हैं इसके अनुयायी प्राय: दो श्रेणियों विभाजित किये जाते हैं पहले नौसिखिये दर्जे के जो इस कला की ABCD सीख रहे हैं

दुसरे जो इस कला में पारंगत हैं नौसिखिये ज्ञानाभाव के चलते अक्सर बचकानी हरकत करते रहते हैं , उनकी हालत ऐसी होती है जैसे "बंदर के हाथ में आइना" ऐसे लोग टांग खींचने के साथ साथ सामने वाला का हाथ ,गर्दन ,बाल सबकुछ खींचने लगते हैं ,जिसके चलते कोई इनकी सेवा लेना उचित नहीं समझता दूसरी श्रेणी में पारंगत अनुयायी आते हैं जो सही मायनो में इस कला के सच्चे
पारखी है

इनकी सेवा लेने में बड़े बड़े उद्योगपति और राजनीतिज्ञ खासी दिलचस्पी लेते हैं,इसीलिए ये अमूमन मशरूफ ही रहते हैं इसका मुख्य कारण है कि जब अनुभवी लोग टांग खींचते हैं तो अपने पुरे तजुर्बे का इस्तेमाल करते हैं और उस वक़्त सामने वाले को पता ही नहीं चलता कि उनके निचे से टांगे निकाल दी गई हैं , और जब आभास होता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है

"विक्रम"

बुधवार, सितंबर 21, 2011

दारु एक दवाई है करती चोखो काज



दारु एक दवाई है करती चोखो काज !
आज भर भर बोतल पिवन बेठ्यो समाज !
ई दारू में रजवाड़ा गया और गया राजाओ का राज !


अब भी सुधर जाओ थे मत होवो बर्बाद !
गहनों बिक गयो गांठो बिक्ग्यो बिकगी जमी जायदाद !
एक रिपिया री पैदा कोनी क्यूँ हो रया बर्बाद !

घरां पेली पावना आता बान चाय पानी री मनवार कराता !
अब मेहमाना न बोतल प्याओ !
नहीं मिले तो दो चार थैली ल्याओ !

नहीं मिली तो इज्जत जावे !
खाली रोटी घालता शर्म सी आवे !

पाड़ोसी के फोजी आयो दो चार बोतल जरुर ल्याओ !
कह लुगाई बेगा ल्याओ पावना न तो कीया जिया ही पाओ !

दारु आपां थ्री एक्स ले स्यां रिपिया रोकड़ी १५० देस्या !
रिपिया जेब में घाल्या घरां सु खाता खाता चाल्या !

घरां सु ठेके पर आया बा कुणसी है थ्री एक्स दे रे भाया !
घरां पावना आया चोखी दे जे रे भाया !

बाबोसा अबार ही गाडी आई थैली आपां २०० गिरवाई !
रिपिया में था सुं नगदी में ले स्या जना माल चोखो ही दे स्या !
दो चार बोतला अंग्रेजी में आई बे था खातर ही रखवाई !
बोतल कन्टेसा री आई बाने काढ पकड़ाई !

थैली दो दे दे कलासी बां न घाल ले स्यूं निरवाली !
थैली पेट में एक गेरी आयां हु गी घनी देरी !
घरां घरवाली खड़ी उडीके कठे आता दिखे !
आज सगली काली हु ज्यासी अब कुन सी हालत में आ सी !
अब मुस्किल सी घरां पुग्या घर का स लाल ताता हुग्या !

ले बोतला घरां पुग्या जना दो चार लुंका सागे हो ग्या !
आज पावना आया दिखे जना ही लुंका मन उडीके !
दो चार पेग मिल ज्य़ासी जना आज को काम बन ज्यासी !
अब बोतल अंग्रेजी री आई बोतल बाजोटा पर सजाई !

भायो गिलास कांच को ल्यायो लोटो पानी को पकडायो !
दारु गिलासा में घाली जतान प्लेट पापड की आली !
प्याला चाले है चोखा घरवाली बैठ गी है झरोखा !
अब सगा सगा करे है बात पीता पीता ढलगी रात !
अंग्रेजी दारु खत्म होगी अब खोल दी है थैली !


डाकिवाड़ो सूझ गयो आ ने आ शान कियां रेली !
टाबर फिरे आगे आगे कँवर सा रोटी कणा सी मांगे !
रोटी आधी रात मंगवाई बा भी ऊपर छात पर आई !
थाल बाजोटा पर आयो थाल ने चोखो घनो सजायो !
म्हारे घरां बटेऊ आया भोजन खीर खांड का बनाया !
फुलकी दूपडती बनवाई घी घाल र गल्घच करवाई !

सान्ग्र्या को रायतो बनायो टीटा को अचार !
अब पीकर हो गया बावला खानों गयो बेकार !

अब सगा गास्या दिरावे बेरियाँ ने मुंडा नजर न आवे !
सगा सगा आपस में बतलावे बात बा री समझ नही आवे !
अब रोटी जीमन रो होश नही है खानों निचे ढुल रियो है !
पीकर मतवाला बन गया है अन्न देव कियां रूस रिया है !

कुं विजेंद्र शेखावत (सिंहासन)

टीको टमको दायजो











टीको टमको दायजो !
बड़ियो घर घर आज !
फेल्यो सारे देश में !
दुखी फिरे समाज !

भेंस बिके पाडी बिके !
बिके जमीन जायदाद !
बेटा बेच बेच मोल ले !
आँ बापा लखदाद !

टुटयो आभो धरती घसगी !
कड़क बिजली घर में पड़गी !
बिगड्यो जापो पत्थर ल्याई !
करम फुट गया बेटी जाई !

सासु हाथ लगाया काना !
बड़ी जेठानी देवे ताना !
भुवा ननद ड्योढ़ी बोले !
हँसे देवरानी लुक लुक ओले !

सुसरो सुनी गाज सी पड़गी !
पूरा घर में सांस सी निकड गी !
उलटी रीत समाज री, करनी इणरी खोज !
बेटो जल्म्याँ हरख क्यूँ , क्यों बेटी ज्ल्म्याँ सोच !

दिन दिन बेटी बढ़ती जावे !
मान बापा ने सोच सी खावे !
जा ठुकरानी सा रोज जगावे !
आपने नींद क्यां री आवे !

स्यानी बेटी घर में मावे !
बात अनुती रोज सुनावे !
बाप निकल्यो टाबर दुंदन !
शहर गाँव री रोही खुदन !
सगा सम्बन्धी सारा पहुँच्यो !
जान आप री एक नही चुक्यो !

म्हारी घनी फूटरी बेटी स्यानी !
रंग रूप पदमनी रानी !
पढ़ी लिखी लक्षणा रो लाडो !
काम काज गुना रो गाडो !

आ बात कोई नही पूछे !
सम्बन्धी बात एक ही पूछे !
टीको टमको कतो क देस्यो !
ब्याव में खर्चो कतो क करस्यो !

बात सम्बन्ध री करने में !
हुवे है मोल और तोल !
खूब खरीदो टाबरिया !
ऊँची बोली बोल !

पढ़े पांचवी टाबर काणो !
मुंह ऊपर माता दानो !
महे बापजी बात नही खोली !
लागी पांच हजार री बोली !

छोड़ काणा न पढ़योडा रे पहुंच्या !
भाव सुन्या निहाल सा हु गया !

जाय कलेजे कीमत पूछी !
आँ को कीमत सब स्यूं ऊँची !

डिग्री दिख्याँ दायजो मांगे !
टीको और स्कूटर साधे !
कई कार बंगला रा भूखा !
देवे पदुतर लुखा सुखा !

कई बिलायत भेजे टाबर !
ओ खर्चो बेटी वालां पर !
कई बैंक रा नाम बतावे !
नाम टाबर रा चेक कटावे !

टाबर केवे देश में !
रिश्वत लेना पाप !
बिना पिसां पर्णा कोनी !
रिश्वत खोरा आप !

अब गांवड ल्या आगे आसी !
हर बातां में ऊँची जासी !
अब छोरियां आन्दोलन करसी !
बिकता टाबर नही परनसी !

अब तो छोरा ही चेत्या !
बिके नही बाप रे बेच्या !
अरं बापां थोड़ा सोचो !
बलद जियां क्यूँ म्हान बेचो !

बेटी वालो बेटी देवे !
ऊपर दान क्यां रो होवे !
बेटो घरां बाप के रहवे !
फेर कीमा क्यां री लेवे !

ऊँचा घर रो टाबर चावो !
तुला दान में सोनो ल्याओ !

बिकता मिनख बाजार में !
गुलाम जमाना माय !
आज पढ़या लिख्या बिक रहया !
आ तिलक दायजा माय !

जोड़ तोड़ इयान को बिठावे !
धन दायजो ज्यादा चाहवे !
कम मिल्या मन में पछतावे !
ले ले पिसा बेटा बयावे !

खून लाग री यो आंके मुंडे !
खरीददार बेटा रा ढूंढे !
बेटा बनया फिरे क्रांतिकारी !
अ बातां है आज्ञाकारी !

बुढलिया केवे देश में !
रिश्वत लने पाप !
बिना पिसा परना कोनी !
रिश्वत खोरा आप !

अब सारे देश में मातम छा गयो !
जिया तार मरण रो आ गयो !

नहीं हरख नही कोई हांसी !
सारे घर में घोर उदासी !
जापा वाली सिसक सिसक कर रोवे !
काचा जापा आख्याँ खोवे !

हिन्दू हाथ गाय सी मरगी !
कसूर कर दियो बेटी जन दी !

कुं विजेंद्र शेखावत (सिंहासन)

रविवार, सितंबर 11, 2011

Lifestyle बनाम जीवनचर्या




अक्सर शहर के लोग गाँव वालो को हिकारत की नजर से देखते हैं और उनको गवार समझते हैं।  कुछ समझदार शहर वाले तरस खाने वाले अंदाज में उनसे बात करते हैं गाँव के लोगो को आभाव में जीवनयापन करना पसंद। है वो बेकार के तामझाम को अपने जीवन का हिस्सा बनाकर अपनी शांति में खलल डालना पसंद नहीं करतेमगर शहर के लोग कभी समझोता नहीं करते दिन रात ऐशोआराम  के बहाने तलाशने वाले चैन की नींद को तरस जाते हैं |

 

बड़े गाँव में ४०० से ५०० तक परिवार रहते हैं और वो हर एक सदस्य के बारे में खबर रखते हैं।  और एक दुसरे के सुख दुःख में  हर वक़्त तत्पर रहते हैं आज शहरों में बगल वाले मकान में कोन  रहता है।  पता नहीं अकेले रहने वाले बुजर्ग घरो में ही दफ़न हो जाते हैं।  बरसो बाद कोई आता है तो उनका कंकाल ही मिलता है। बच्चे  आज कल माँ-बाप को अकेला छोड़ विदेश चले जाते हैं , और बड़े बुजर्ग उनका इन्तजार करते करते दुनिया छोड़ देते हैं।  किस काम का ऐसा जीवन और एसोआराम ? अपने शरीर को आराम देना ही सच्चा सुख नहीं कभी अपनी आत्मा ,अपने दिल और दिमाग को भी उस  परमसुख की अनुभूति होने दो जिसका वो हक़दार है| आज में जहा रहता हूँ उसी अपार्टमेन्ट में 5 और परिवार रहते हैं , सभी के आने जाने का रास्ता एक ही है मगर बरसों गुजर जाते है एक दुसरे को देखे हुए बरसों बाद कभी आते जाते हलके से हाय हैलो या एक दुसरे की तरफ मुस्कराभर देते हैं।  इसके सिवा कोई सम्बन्ध नहीं है गावों में इसके विपरीत है , आप किसी को एक दिन ना देखे तो पूछने लगते है "वो आज कल दिखाई नहीं दे रहा" जब तक किसी से मिलकर दो चार घंटे बिता नहीं लेते चैन नहीं आता।  


शहर के लोगो के साथ एक बात और भी है और वो है समय का आभाव  हफ्ते में ६ दिन तो सुबह से रात होने तक घर चलाने के जुगाड़ में  लगे रहते हैं। छुट्टी के दिन लम्बे समय से बकाया कामों का निपटारा  कभी भूले भटके कम से छुट्टी ले भी ले तो बेचारे को १० कम निपटने  होते हैं , जैसे बिजली का बिल , गेस की बुकिंग , बच्चो के फ़ीस , राशन ,पानी,शोपिंग आदि  आदि।

 
मगर गाँव में लोगो की ऐश ही ऐश है  सही मायने में एक सही जीवन वो ही जी रहे हैं , मगर पता नहीं शहर वाले उनको "बेचारा" क्यों समझते हैं ? मगर शहर के लोगो के कुछ खास दोस्त भी है जो  अक्सर जीवनभर उनके साथ रहते हैं जैसे दिल, किडनी, रक्तचाप, मधुमेह की बीमारी।  गाँव के लोगो में बहुत कम देखने को मिलते हैं ये अनचाहे दोस्त, क्योंकि गाँव के लोग मेहनत ही इतनी करते हैं की ये अनचाहे दोस्त टिक ही नहीं पाते उनके साथ ।

आप सोचिये कहाँ रहना पसंद करेंगे ?
 




"विक्रम"

शनिवार, सितंबर 03, 2011

Windows 7 - Windows XP - Office 2010


  1. काफी इंतजार के बाद गूगल ने अपनी गूगल ड्राइव सर्विस लांच ही कर दिया, गूगल की नई गूगल ड्राइव की मद से यूजर वीडियो, गैलरी के अलावा डाक्यूमेंट को अपनी गूगल ड्राइव में अपलोड कर सेव कर सकेगा

    http://howto.cnet.com/8301-11310_39-57419559-285/how-to-get-started-with-google-drive/

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1.Learn how to install Windows 7
Installing and reinstalling Windows 7
Windows 7 installation how-to, step by step - Computerworld
How to Install Windows 7

http://windows.microsoft.com/en-US/windows7/Installing-and-reinstalling-Windows-7
Windows 7 installation how-to, step by step - Computerworld
How to Install Windows 7
How to Create a Bootable Windows XP Setup CD/DVD from a Pre ...

how to format and install windows xp This explains step-by-step how to format hard drive partition using the Windows XP installation CD

How to format a computer and Reinstall Windows
How to Format Hard Drive and Install Windows Operating System
Format hard drive, reinstall Operating System,partition hard disk
how to format only 'C' drive
How to partition and format a hard disk by using Windows XP Setup ...
How to partition and format a hard disk by using Windows XP Setup ...


2.Remove Internet Explorer 8 and restore
How do I remove Internet Explorer 8 from Windows as a ...
Uninstall, Disable, or Delete Internet Explorer 8 from Windows 7 ...
How to remove internet explorer 8, and install internet explorer 7 ...
How do I remove Internet Explorer 8 from Windows as a ...
Uninstall, Disable, or Delete Internet Explorer 8 from Windows 7 ...
How to remove internet explorer 8, and install internet explorer 7 ...




3. Google Appsa
How to Buy Additional Google Apps Licenses : KnowledgeBase
Google Apps for Business | Purchase Google Apps Premier
How to Buy Additional Google Apps Licenses : KnowledgeBase
Google Apps for Business | Purchase Google Apps Premier


4. How much does it cost to set up Google Apps?How much does it cost to set-up Google Apps?

Apps for Business
Email, IM, voice and video chat Each user gets 25 GB of email and IM storage (50 times the industry average).


Anytime, anywhere access to your email Gmail is securely powered by the web, so you can be productive from your desk, on the road, at home and on your mobile phone, even when you're offline.

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http://www.sefari.net/how-much-does-it-cost-to-set-up-google-apps.php
Apparently, that depends on which version of Google Apps best suits your needs. Google Apps offers three versions of services: Standard, Premier and Education. You may read here the differences between the versions of Google Apps. Generally speaking, money wise, Google Apps Standard version and Education version are free (of course, not any organisation or individual can get the Education version), while the Premier version costs $50 (or equivalent amount of value in GBP and Euro) per user per year. For example, if your company has 10 employees, and each would like to have a Google Apps user account, it would cost you $500 per year. You may say, well, I also need an account for sales, or admin. Of course you can buy extra user accounts for these (typically email accounts), you can also set them up as Google Apps Groups, so that you wouldn’t have to pay a penny for these group accounts.



5. What about Googel Apps Domain Registration.
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http://www.google.com/apps/intl/en/business/domain.html

6. How to create Google apps email group alias

https://groups.google.com/a/googleproductforums.com/forum/#!category-topic/apps/how-to/Ppv2WpNigHY

7. A CNAME record  - MX Record.
Create a CNAME record - Google Apps Help
Creating Your MX Records & CNAME Records for Google Apps: (mt ...
DNS configuration for Google Apps - forum.slicehost.com


8. FACEBOOK

HOW TO HACK FACEBOOK ACCOUNTS' PASSWORDS WITHOUT ...
hack facebook password, how to hack facebook ... - Daily Motion

How to hack Facebook account? With our site you can hack any Facebook account
Hack Facebook: online password hacking


Hack Facebook Password


Learn How to Hack Facebook Password - Devil's Cafe
http://www.rafayhackingarticles.net/2010/01/4-ways-on-how-to-hack-facebook-password.html
How To Hack Facebook Passwords
How to hack facebook password
How to Hack a Facebook Password - Video
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The Facebook Magic Trick


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9. Google Docs - online documents with real-time collaboration
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Works across operating systems Google Docs works in the browser on PC, Mac, and Linux computers, and supports popular formats such as .doc, .xls, .ppt, and .pdf.

Easily upload and share files Files stored on Google Docs are always accessible and backed-up online.

Secure access controls Administrators can manage file sharing permissions system-wide, and document owners can share and revoke file access at any time.


9.Office very slow opening docs (Word, Excel, Powerpoint),
Office 2010 first launch very very slow.
Office 2010 first launch very very slow
Opening files in Office 2010 slow! - Windows 7 Forums
Office very slow opening docs (Word, Excel, Powerpoint) - MS ...
1.) Open My Computer.


2.) Go to Tools -> Folder Options, and click on File Types.

3.) Find the extension of the file in question (XLS, DOC, etc.)

4.) Highlight the extension, and click \"Advanced.\"

5.) Highlight the \"Open\" Action, and click \"Edit.\"

6.) Click into the \"Application used...\" field, and scroll to the end

of the command.

7.) Put a space at the end, and type in \"%1\" (With the quotes.)

8.) Uncheck \"Use DDE.\"

9.) Click \"OK.\"

 

 










रविवार, अगस्त 07, 2011

बे-घर दिल



अरे यार दिल …
सुन तो जरा ……!
अरे ! रुक भी जा यार……!
सुन…! अरे ! …रुक तो जरा !
पागल …कहाँ तु इधर उधर भाग रहा है ?
थोङा सुस्ता ले… कब से जाग रहा है
में तो अब थक चुका हुँ
इसीलिए तो इधर रुका हुँ
मगर पता नही …
तु इतना कैसे भाग लेता है ? ……
अरे…! तु सुन भी रहा है कि नही… ?
तु कान खोल के सुन ले …
में अब और नही भाग सकता …
अरे आखिर में एक इन्सान हुं यार…
तुम्हारे जैसा कोइ दिल नही……
कभी कुछ पल कहीं ठहर और देख …
नदी, नाले,गावँ और ये शहर तो देख
बहुत अच्छा लगेगा …
सच्ची …
कसम से … ओहो !
अब फ़िर कहां खो गया …?
यार हद है……
जाने कैसा दिल मिला है… ?
मेरे भाई……सुन…!एक आखिरी बात…
में तेरे हाथ जोड़ता हुँ …। !
अब…
तु मुझे …
जीने दे
बस !


-----------------------------------------


"विक्रम" (07-Aug -2011 )



बुधवार, अगस्त 03, 2011

बिखरता बचपन





दोनों हथेलियों पे अपना मुह टिकाये वो बच्चा कहीं शून्य में कुछ सोच रहा था बच्चे अक्सर इतने गंभीर नहीं होते वो तो उदंड प्रवर्ती के और बे-परवाह होते हैं, उन्हें बस हर वक़्त खेलने से मतलब वो अक्सर खेलने में इतने मशगूल हो जाते हैं की भूख प्यास तक को भुला देते हैं मेने बच्चे के विचारों में खुद को दाखिल किया और उस मासूम के चिंतन का कारण जानने की कोशिश की एक प्रौढ़ और बच्चे की सोच में जमीन आसमान का फर्क होता है , बच्चे ज्यादातर खेल और खाने से ताल्लुक रखते हैं इसलिए ये दो चीजे उनकी सोच का मुख्य विषय होतें हैं और प्रौढ़ अक्षर दुनियादारी में उलझा हुआ रहता हैं इसीलिए उसकी सोच का दायरा असीमित होता है 


लम्बे समय के अन्तराल के बाद में टकटकी लगाये उस बच्चे के पास जा बैठा और खामोश रहकर वहां बैठने की उसकी इजाजत का इन्तजार करने लगा बच्चे की लम्बी ख़ामोशी मेरे लिए वहां बैठने की इजाजत थी सो में बैठ गया और बच्चे से बातों का सिलसिला शुरू करने का उपाय तलाशने लगा आप चाहे कितने ही बड़े तीशमारखां हों मगर बच्चे से नहीं जीत सकते सो मेने अपने आप को बच्चा बनाया और बातों का सिलसिला शुरू किया अरे! आपने तो बड़ी अच्छी टी-शर्ट पहनी है .....और ये सामने तो बिलकूल आप जैसे एक बच्चे की फोटो भी छपी है.. मगर फोटो में ये दूसरा ...कोन है भई ? .(मेंने रुककर पूछा ) बच्चा अभी भी शून्य में निहार रहा था.



.........में कुछ देर चुप रहकर उसकी प्रतिक्रिया का इन्तजार करने लगा....."वो चिंटू है"..... ( बच्चे ने बिना ऊपर देखे जबाब दिया )..... "चिंटू कौन भई ?", मैने उत्साहित होकर पूछा ताकि बच्चा शून्य से बाहर आये और खुलकर बातें करे. एक पल चुप रहकर बच्चे ने सामने के घर की तरफ इशारा किया और कुछ देर चुप रहकर बोला ... "वो है उसका घर" ... मैने सामने वाले घर के दरवाजे पर लगे लोहे के ताले को देखा..... उस घर के सामने जमा कूड़े से लग रहा था की वो काफी दिनों से बंद है एक पल सोचा और फिर पूछा कहाँ गया चिंटू ?
"उसके पापा को शहर में नोकरी मिल गई इसलिए वो चिंटू और उसकी मम्मी को भी शहर ले गए......", "पढने के लिए....." ,बच्चे ने घर की तरफ देखते हुए कहा (कुछ देर चुप रहकर बच्चे ने कहा).... "अब वो वहीँ रहेगा" मैने उस मासूम की तरफ देखा तो लगा जैसे किसी ने वक़्त से पहले   उसका बचपना छीन लिया हो.  में कुछ देर उसको सांत्वना देने के लिए वहीँ बैठकर सोचने लगा ...आस पास ख़ामोशी पसरी हुई थी और एक बचपन एक प्रोढ़ से मन ही मन शिकायत कर कर रहा था और मनो कह रह हो ...की आपके बचपन जैसी खुशिया मुझे क्यों नहीं ? में कुछ देर अनमना से बैठा रहा और थोड़ी देर बाद बच्चे की पीठ सहलाकर एक और चल पड़ा मेरी आँखों के सामने मुझे मेरा बचपन खेलता हुआ नज़र आ रहा था , सामने मोहल्ले का वो चौक जहाँ हम बचपन में खेला करते थे , वो बूढ़े ताऊ का घर जहाँ से वो हमें शौर करने पर डांटते थे , वो बिल्लू , पप्पू , विक्की , बंटी के घर ... यही दुनिया थी बचपन की मगर आज .... बूढ़े ताऊ के घर की जगह एक खंडहर है

सुना है ताऊ अब इस दुनिया में नहीं रहे और उनका परिवार अपने खेतों में जाकर बस गया , अब वहां बच्चे नहीं खेलते क्योंकि चौक ही नहीं रहा वहां अब कूड़े का ढेर है जहाँ सभी घरों के लोग अपने घर का कचरा फेंकते हैं मेरे दोस्तों के घर भी अब पहचान में नही आ रहे थे , क्योंकि अब एक घर में चार से पांच नए घर बन गए बड़े होने पर बच्चे अक्सर अलग परिवार बना लेते हैं , इसीलिए पता नही चलता किसका घर कौन सा है

में एक घर के सामने रुक गया और सर को खुजाते हुए कुछ याद करने के कोशिश करने लगा मेरे बचपन का सबसे अच्छा दोस्त था बबलू ये उसी का घर था ... उसे घर तो नही कहा जाता हाँ घर का अवशेष जरुर कह सकते हैं अपने दिमाग पे जोर डालकर मेने उस घर का वो पुराना खाका बनाया जब वो घर खुशियों से सरोबार रहता था, बबलू के पिता अक्सर मुझे और बबलू को बहुत प्यार करते थे घर के गेट पर बनी दो सीमेंट की कुर्सीयों पे में और बबलू घंटों खेला करते थे आज वहां वीरानी पसरी हुई है अचानक मुझे किसी ने धक्का दिया तो मेने मुड़कर देखा एक युवा शराब के नशे में धुत मुझे एक और धकेलकर उस टूटे फूटे खंडहरनुमा घर में घुस गया कुछ देर बाद वो बाहर आया और दिवार के एक टूटे हुए हिस्से पर बैठा गया वो गर्दन झुका कर कुछ बड़बड़ाने लगा, बीच बीच में गर्दन उठा कर इधर उधर देखने लगता अचानक मुझे लगा की वो कुछ जाना पहचाना सा है मेने गोर से देखा तो सन्न रह गया वो मेरा दोस्त बबलू था क्या हालत हो गई है उसकी अपनी उम्र से दुगना लग रहा था वो बात करने की हालत में नहीं था में कुछ देर उसकी हालत देखता रहा और फिर आगे निकल गया

बाद में किसी ने बताया बबलू के पापा के निधन के बाद उनकी माली हालत ख़राब होने लगी और बबलू भी गलत दोस्तों के साथ रहकर शराब पीने लगा उसकी माँ भी २ साल पहले उसका साथ छोड़ भगवान के पास चली गई मगर जाने से पहले बेटे के फेरे करवा दिए थे आजकल अक्सर बबलू का उसकी पत्नी से झगडा होता है और कारण एक ही है , पैसे की तंगी बबलू का बेटा इधर उधर सहमा सहमा सा गुमता रहता है , फटी हुई शर्ट को मुह में चबाता हुआ वो किसी दोस्त को तलाशता रहता है उसका भी सायेद कोई दोस्त अपने मम्मी पापा के साथ शहर चला गया होगा

By "विक्रम" (5th Aug '2011 )

मंगलवार, जुलाई 26, 2011

(((((((((((((बीस साल बाद )))))))))))





बहुत सालों बाद इस बार में अपने गाँव में लगभग १५ दिन रुका और मुझे इन १५ दिनों में एहसास हो गया की मेरा वो बीस साल पहले वाला गाँव अब गाँव नहीं रहा वो शराबियों और जुवारियों का अड्डा बन गया है



में हर साल अक्सर एक या दो बार एक या दो दिन के लिए जा पाता था मगर इस बार कारणवश मुझे १५ दिन रुकना पड़ा और इन १५ दिनों में मेने १० से लेकर २५ साल के युवाओं को शराब डूबे हुए ही देखा रात तो रात दोपहर में भी शराब के नशे में झूमते,गलियों में गिरते ,एक दुसरे से झगड़ते ,गाली-गलोज करते उनको रोजाना देखा गया ऐसे परिवार के युवा भी नशे में लहराते मिले जिनके घर में एक वक़्त का खाना जुटाना भी मुश्किल है मगर पाता नहीं शराब कैसे जुटा ली जाती है


इन सब के पीछे शराब माफियाओं का हाथ साफ साफ नजर आता है में नहीं मानता ९९% युवा एसे कैसे शराब के आदि हो गए , आज कल ठेके पे मिलने वाली ओरंज शराब में जरुर ऐसा कुछ है जो एक या दो बार पीने से पीने वाले को अपना गुलाम बना लेती है घर घर में ठेके वाले शराब रख देते हैं और फिर परिवार के परिवार बर्बाद कर देते हैं





२० साल पहले मेरे गाँव में गीनती के पीने वाले थे मगर आज गीनती केन पीने वाले हैं अगर वक़्त रहते इसको फैलने से रोका नहीं गया तो ये एक महामारी बनकर युवा पीढ़ी को वक़्त से पहले बुड़ा और बीमार बना देगा हमें हर गाँव में ये एलान करना होगा की कोई भी २० साल से कम उम्र के लड़के को शराब ना बेचे और ना ही पीनेदे , हम इसी उम्र में उनको रोक सकते हैं वरना बाद में बहुत देर हो जाएगी और रोक पाना उतना ही कठिन होगा


"विक्रम"

रविवार, जून 26, 2011

Villages in Rajasthan

Villages in Rajasthan Category navigation


1Nimaj

2Marwar Junction

3Sojat Road

4Samdari

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8Jeenmata

9Tanot Mata

10Sonana Khetlaji

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17Bagra, Marwar

18Bhadrajun

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21Santhu

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24Khirnal

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28Bhuma

29Kari, Jhunjhunu

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42Sunari

43List of villages in Degana Tehsil

44Kheri Leela

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46Bakhasar

47List of villages in Ladnu Tehsil

48Deh, India

49Jayal

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51List of villages in Jayal Tehsil

52Gunawati

53Nakoda

54Garal

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56Sheo

57Baytoo

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73Sapt-Kund, Bhagwatgarh

74Khandip

75Khandar

76Binega

77Sotwara

78Gugalwa

79Pacheri

80Tain, shekhawati

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82Mahapalwas

83Hanumanpur, Rajasthan

84Khudania

85Pilauda

86Bana, Rajasthan

87Maulasar

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96Napasar

97Kalwa, Rajasthan

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100Harsawa

101Khatushyamji, Rajasthan

102Lolawas

103Bhuwal mata

104Kanodia Purohitan

105Jhanwer

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107Kotharia, Rajasthan

108Lordi Dejgara

109Ratkuria

110Ramdevra

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113Jawai Dam

114Khichan

115Khejarli

116Sinsini

117Wair, India

118Chand Khedi, Kota

119Hindoli

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122Tahindesar

123Nagari (Chittorgarh)

124Sarsala

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128Nayagaon

129Phalasia

130Nai, Rajasthan

131Garhi, India

132Barodiya

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134Khinwasar

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136Deorala

137Fadanpura

138Salamsingh ki dhani

139Mandholi

140Kudan, Rajasthan

141Togra Sawroop Singh

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143Palthana

144Sutot

145Bathot

146Katrathal

147Birodi, India

148Gothra Bhukaran

149Karanga Chhota (village)

150Tihawali

151Mandela, Rajasthan

152Beri sikar

153Birania

154Tajsar

155Roru

156Rosawa

157Mangloona

158Ladhana

159Harsh, Sikar

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161Moondwara

162Dantrai

163Kayadara

164Dhansa

165Mungathala

166Kusuma

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168Jirawala

169Mandoli

170Sankhwali

171Chitalwana

172Bagoda

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175Bhanwarani

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179Tilonia

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181Kanpura, Rajastan

182Bhangarh

183Mousampur

184Kankwadi

185Nangali Saledi Singh

186Chak Kazi Barrpura

187Jhadoli

188Erinpura

189Swaroopganj

190Jawal

191Kalandri

192Koliwara

193Velar, Rajasthan

194Panchetiya

195Mundara

196Dhamli

197Bagrinagar

198Barwa, Rajasthan

199Lunawa, Rajasthan

200Auwa

201Ghanerao

202Hemawas

203Jojawar

204Somesar

205Ranawas

206Phulad

207Rohat

208Malari

209Narlai

210Sewari

211Gura Sonigara

212Hadecha

213Chimrawas

214Khimel

215Bharunda

216Ramsin

217Mandwala

218Ahor

219Raipur, Rajasthan

220Kudki

221Modran, Rajasthan

222Bishangarh, Rajasthan

223Jonaicha khurd

224Maharajaswaas

225Luna, Rajasthan

226Gagarwas

227Changoi

228Kalwas

229Sandwa

230Mandela Chhota, Rajasthan

231Sahawa

232Lakhau, Rajasthan

233Lalgarh, Rajasthan

234Salasar

235Dadrewa

236Bhukhredi

237Dudhwa Khara

238Jandwa

23974GB, Anupgarh, India

240Bagar, Rajasthan, India

241Narhar

242Badangarh

243Parasrampuria

244Singhana

245Khudala

246Sultana, Rajasthan

247Sonasar

248Rawla Mandi

249Amarpura Jatan

250Ramsinghpur

251Gudhagorji

252Mahansar

253Jakhal

254Thathawata

255Parasiya

256Sultaniya

257Nindar

258Tadavas

259Paota, Rajasthan

260Kalibangan

261Ked (village)

262Naliasar

263Padampura

264Bantkhani

265Giglana

266Titarwala

267Hasampura

268Abhaneri

269Birkali

270Rol Qazian

271Dhuan Kalan

272Pacca Saharana

273Chandlai

274Pirana, Rajasthan

275Bagri Ki Dhani

276Netrampura

277Mirjawali Mair

278Ramrarh, Hanumangarh district

279Dablirathan

280Jhansal

281Goluwala

282Fefana

283Dhaban

284Jhajhar



Villages in Rajasthan

रविवार, जून 05, 2011

उड़ने वाला घोड़ा

एक बार एक चोर को राजा के पास लाया गया | उस राज्य का कानून था की चोरी करने वाले को
मोत की सजा दी जाती थी | राजा ने भी उसी कानून के तहत उसे सजा सुनाई , और चोर को अपने
बचाव में कुछ कहने के लिए इजाजत दी |

चोर ने कहा : महाराज मुझे आपकी सजा मंजूर है मगर मेरे मरने के साथ एक कला भी मर जाएगी
जो सिर्फ में जानता हूँ |

राजा ने पूछा : तुम कोनसी कला जानते हो ?

चोर ने कहा : महाराज में किसी भी घोड़े को 6 माह में उड़ने वाला घोड़ा बना सकता हूँ |
राजा के सिपहसालारो ने कहा : महाराज ये बहुत चालाक चोर है और फांसी से बचने के लिए बहाना
बना रहा है |

चोर ने कहा : महाराज आप जैसा चाहे करें मगर धयान रहे आप का राज्य एक अनोखी कला
से महरूम रह जायेगा और आप एक उड़ने वाले घोड़े से |

राजा ने कहा : ठीक है तुम्हे 6 माह का समय दिया जाता है और मेरा ये घोड़ा रखो और इसे
उड़ने वाला घोड़ा बनाओ |

उसे घोड़ा दिया और एक बड़ा सा बाड़ा (अस्तबल) दिया जिसमे वो रोज कुछ न कुछ घोड़े
के साथ करता रहता था | एक बार एक कैदी ने उस से पूछा : तुम क्यों लोगों को
बेवकूफ बना रहे हो , भला घोड़ा भी कभी उड़ सकता है ?

चोर ने कहा : में जानता हूँ की में घोड़े को उड़ा नहीं सकता |
फिर तुमने राजा को ऐसा क्यों कहा ? कैदी ने पूछा

चोर बोला : देखो यार में 6 माह तो जिन्दा रह सकता हूँ और इस 6 माह में
कुछ भी हो सकता है जैसे क़ी,
हो सकता है 6 माह में ये घोड़ा ही मर जाये और फिर मुझे फिर से दूसरा घोड़ा और 6 माह का
अतिरिक्त समय (जीवन) मिले |

हो सकता है 6 माह में राजा ही मर जाये और मेरी सजा बदल जाये |
हो सकता है 6 माह में घोड़ा ही उड़ने ही लगे !!!!

अभिप्राय : उम्मीद नहीं छोडनी चाहिए

"विक्रम"

शनिवार, जून 04, 2011

मेरे मनपसंद शेर

:

- मेरे मनपसंद शेर :-


गुज़रने को तो हज़ारों ही क़ाफ़िले गुज़रे
ज़मीं पे नक्श-ए-क़दम बस किसी किसी का रहा
-फ़िराक़ गोरखपुरी।


मुख़ालफ़त से मेरी शख़्सियत संवरती है,
मैं दुश्मनों का बड़ा एहतेराम करता हूँ ।
-बशीर बद्र


वो आये हैं पशेमां लाश पर अब,
तुझे अय ज़िंदगी लाऊं कहां से ।
--मोमिन


जब मैं चलूं तो साया भी अपना न साथ दे,
जब तुम चलो, ज़मीन चले, आस्मां चले ।
-जलील मानकपुरी


हम तुम मिले न थे तो जुदाई का था मलाल,
अब ये मलाल है कि तमन्ना निकल गयी ।
-जलील मानकपुरी


मुझको उस वैद्य की विद्या पे तरस आता है,
भूखे लोगों को जो सेहत की दवा देता है।
-‘नीरज’


बहुत कुछ पांव फैलाकर भी देखा ‘शाद’ दुनिया में,
मगर आख़िर जगह हमने न दो गज़ के सिवा पायी।
-‘शाद’ अज़ीमाबादी


मौत ही इंसान की दुश्मन नहीं,
ज़िंदगी भी जान लेकर जाएगी।
-‘जोश’ मलसियानी


दिल टूटने से थोड़ी सी तकलीफ़ तो हुई,
लेकिन तमाम उम्र को आराम हो गया।
-‘सफ़ी’ लखनवी


नींद भी मौत बन गयी है
बेवफ़ा रात भर नहीं आती।
-‘अदम’


इसी फरेब में सदियां गुजार दीं हमने,
गुजरे साल से शायद ये साल बेहतर हो।
-‘मेराज’ फैजाबादी


बड़ी मुद्दत से तनहा थे मेरे दुख
खुदाया, मेरे आँसू रो गया कौन
-परवीन शाकिर


मेरे मौन से जिसको गिले रहे क्या-क्या
बिछड़ते वक़्त उन आँखों का बोलना देखे
-परवीन शाकिर


बातों का भी ज़ख़्म बहुत गहरा होता है
क़त्ल भी करना हो तो बेख़ंज़र आ जाना
-सुरेश कुमार


हम उसे आंखों की देहरी नहीं चढ़ने देते
नींद आती न अगर ख्वाब तुम्हारे लेकर
-
आलोक

तरतीब-ए-सितम का भी सलीका था उसे
पाहे पागल किया और फिर पत्थर मारे

खोला करो आँखों के दरीचों को संभल कर
इनसे भी कभी लोग उतर जाते हैं दिल में


"चुपके से भेजा था एक गुलाब उनको
खुशबू ने शहर भर में मगर तमाशा बना दिया"

"वहां से पानी कि एक बूँद भी न निकली
तमाम उम्र जिन आँखों को  हम झील लिखते रहे"

"उस शख्स को बिछड़ने का सलीका भी नहीं आता
जाते जाते खुद को मेरे पास छोड़ गया"

"कोई पूंछता है मुझसे मेरी ज़िन्दगी कि कीमत
मुझे याद आता है तेरा हलके से मुस्कुराना"

"इन्सान की ख्वाहिशों की इन्तहा नहीं, .....
दो गज़ जमीन भी चाहिये दो गज़ कफ़न के बाद"

"किस रावण की बाहें काटूँ,किस लंका में आग लगाऊं
घर घर रावण,घर घर लंका,इतने राम कहाँ से लाऊं"

बहुत मुश्किल से होता है तेरी "यादों" का कारोबार,
मुनाफा कम है लेकिन गुज़ारा हो ही जाता है...


मौजूद थी उदासी; अभी पिछली रात की,
बहला था दिल ज़रा सा, के फिर रात हो गयी।


तेरी हालत से लगता है तेरा अपना था कोई,
इतनी सादगी से बरबाद, कोई गैर नहीं करता।


अपने सिवा, बताओ, कभी कुछ मिला भी है तुम्हें,
हज़ार बार ली हैं, तुमने मेरे दिल की तलाशियाँ


उस के दिल में थोड़ी सी जगह मांगी थी मुसाफ़िरों की तरह,
उसने तन्हाइयों का इक शहर मेरे नाम कर दिया।


अब मौत से कहो, हम से नाराज़गी ख़तम कर ले,
वो बहुत बदल गए हैं, जिनके लिए जिया करते थे
!!

कितना मुश्किल है ये जिंदगी का सफ़र भी,
खुदा ने मरना हराम किया, लोगों ने जीना हराम


सोचता हूँ के उसके दिल में उतर कर देखूँ,
कौन रहता है वहाँ, जो मुझे बसने नहीं देता
|

किसी से जुदा होना इतना आसान होता फ़राज़
 तो जिस्म से रूह को लेने फ़रिश्ते नहीं आते।।


-Unknown

तुम इसे प्यार का अंदाज़ समझ बैठे,फराज़
उसकी आदत है निगाहों को झुकाकर मिलना


बात किस्मत की है फराज़ जुड़ा हो गए हम
वरना वो तो मुझे तक़दीर कहा करती थी


कुछ ऐसे हादसे भी जिंदगी मे होते हैं "फराज़"
की इंसान बच टी जाता है मगर जिंदा नहीं रहता


दुखो ने मेरे दमन को यूं थाम रखा है "फराज़"
जैसे उनका भी मेरे सिवा कोई अपना नहीं रहा
"

उँगलियाँ आज भी इसी सोच मे गुम है "फराज़
उसने किस तरह नए हाथ को थामा होगा "



आँसू, आहें, तनहाई ,वीरानी और गम-ए-मुसलसल
एक जरा सा इश्क हुआ था क्या क्या विरासत मे दे गया



पूछा था हाल उसने बड़ी मुद्दत के बाद
कुछ गिर गया आँख मे ये कहके रो दिये



जाने कैसे जीते हैं लोग यादों के सहारे...
मैं तो कई बार मरता हूँ एक याद आने पे....

 
और इससे ज्यादा क्या नरमी बरतूं...
दिल के ज़ख्मों को छुआ है तेरे गालों की तरह....
 
ढलने लगी थी रात... कि तुम याद आ गए,...
फिर उसके बाद रात बहुत देर तक रही....

तुम्हारे शहर मे मैयत को सब कन्धा नहीं देते....,
हमारे गाँव मे छप्पर भी सब मिलकर उठाते

मौत तो मुफ्त में बदनाम हुई है....
जान तो कम्बखत ये ज़िन्दगी लिया करती है

किस कदर मुश्किल है मोहब्बत की कहानी लिखना....
जिस तरह पानी से......... पानी पे .....पानी लिखना...
 

रोज़ रोते हुए कहती है ....ज़िन्दगी मुझसे फ़राज़...
सिर्फ एक शख्स की खातिर.... मुझे यूँ बर्बाद न कर.

 
अभी मशरूफ हूँ काफी....कभी फुर्सत में सोचूंगा....
कि तुझ को याद रखने में....मैं क्या भूल जाता हूँ.....


तुझ से अब कोई वास्ता नहीं है लेकिन.....
तेरे हिस्से का वक़्त आज भी तनहा गुज़रता है....

 

अजीब कशमकश कि जान किसे दें "फ़राज़"
वो भी आ बैठे हैं.....और मौत भी,......
 

अगर वो पूँछ लें हमसे.....तुम्हे किस बात का ग़म है......
तो किस बात का ग़म है.....गर वो पूँछ लें हमसे....
 

किसी से जुदा होना गर इतना आसन होता.....
तो जिस्म से रूह को लेने फ़रिश्ते नहीं आते.....


सुना था ज़िन्दगी इम्तेहान लिया करती है "फ़राज़"
यहाँ तो इम्तेहानो ने ज़िन्दगी ले रख्ही है.....
 

अब तो दर्द सहने कि इतनी आदत हो गयी है"फ़राज़"
कि दर्द नहीं मिलता तो दर्द होता है.....



"सियासत सूरतों पर इस तरह एहसान करती है 
ये आंख्ने छीन लेती है, और चश्में दान करती है"




कुछ रोज तक तो मुझको तेरा इंतजार था
फिर मेरी आरजूओं ने बिस्तर पकड़ लिया

 

फिर किसी ने लक्ष्मी देवी को ठोकर मार दी 
आज कूड़ेदान मे फिर एक बच्ची मिल गई.....

 

जिसने भी इस खबर को सुना सिर पकड़ लिया
कल एक दिये ने आँधी का कालर पकड़ लिया

-मुन्नवर राणा

 

बस दुकान के खोलते ही झूठ सारे बिक गए
एक तन्हा सच लिए में शाम तक बैठा रहा .....

 

"परदेसी ने लिखा है जिसमें, लौट न पाऊँगा 
विरहन को उस खत का अक्षर-अक्षर चुभता है "

 

"बेटी की अर्थी चुपचाप उठा तो ली
अंदर अंदर लेकिन बाप टूट गया"

 

"स्टेशन से वापस आकर बूढ़ी आँखें सोचती हैं
पत्ते देहाती रहते हैं, फल शहरी हो जाते हैं"

 

"ग़रीबी क्‍यों हमारे शहर से बाहर नहीं जाती
अमीर-ए-शहर के घर की हर एक शादी बताती है"

 

कहाँ आसान है पहली मुहब्बत को भुला देना
बहुत मैंने लहू थूका है घरदारी बचाने में

 

 

ये अमीरे शहर के दरबार का कानून है
जिसने सजदा कर लिया तोहफे में कुर्सी मिल गई

- मुन्नवर राणा

 

 

ये बात अलग है की खामोश खड़े रहते हैं
फिर भी जो लोग बड़े हैं वो बड़े रहते हैं....



हमारे मुल्क में खादी की बरकते हैं मियां।
चुने चुनाए हुए हैं सारे छटे छटाये हुए...." 

 

"उखड़े पड़ते है मेरी कब्र के पत्थर ,हरदिन
तुम जो आजाओ किस दिन तो मरम्मत हो जाए"

 


"मिलाना चाहा है जब भी इंसान को इंसान से

तो सारे काम सियासत बिगाड़ देती है"

- राहत इंदौरी
 
 
 
 


 







नुकीले शब्द

कम्युनल-सेकुलर,  सहिष्णुता-असहिष्णुता  जैसे शब्द बार बार इस्तेमाल से  घिस-घिसकर  नुकीले ओर पैने हो गए हैं ,  उन्हे शब्दकोशों से खींचकर  किसी...

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