ब्लॉग का नाम मैने अपने गाँव (गुगलवा-किरताण ) के नाम पे रखा है ,जो सरकार की मेहरबानी से काफी पिछड़ा हुआ गाँव हैं |आज़ादी के इतने बरसों बाद भी बिजली,पानी ,डाकघर , अस्पताल जैसी सुविधाएँ भी पूर्णरूप से मय्यसर नहीं हैं. गाँव के सुख दुःख को इधर से उधर ले जाता हूँ , ताकि नेता को दया आ जाये | वैसे नेता लोगों से उम्मीद कम ही है इसलिए मैने अपने गाँव (Guglwa) का नाम Google से मिलत जुलता रखा है , ताकि Google की किस्मत की तरह Googlwa की किस्मत भी चमक जाये
रविवार, जुलाई 28, 2013
- यादों का ज्वार-भाटा–
13 टिप्पणियां:
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नुकीले शब्द
कम्युनल-सेकुलर, सहिष्णुता-असहिष्णुता जैसे शब्द बार बार इस्तेमाल से घिस-घिसकर नुकीले ओर पैने हो गए हैं , उन्हे शब्दकोशों से खींचकर किसी...
इन लहरों को बिखर जाने देन .. ये सूखती नहीं हैं ... रेत पर प्रेम की नमी बिखरा देती हैं ... सुन्दर शब्द ...
जवाब देंहटाएंVery nice..
हटाएंVery Nice
हटाएंबहुत सुंदर रचना और अभिव्यक्ति .....!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंरामराम.
hut badhiya abhiwayakti ......
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत खूब !!
जवाब देंहटाएंBahut Hi Badhiya.....
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंसमय अंतराल बाद ज्वार-भाटा भी उतर जाता है ...
जवाब देंहटाएंमनोभाव का सुन्दर प्रस्तुति
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति
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