कम्युनल-सेकुलर,
सहिष्णुता-असहिष्णुता
जैसे शब्द बार बार इस्तेमाल से
घिस-घिसकर
नुकीले ओर पैने हो गए हैं ,
उन्हे शब्दकोशों से खींचकर
किसी बंजर जमीन के सीने में ,
दफन कर दो कुंद होने तक ।
रोड़ रेज़,
सांप्रदायिक दंगे ओर
सवर्ण-दलित जैसे
भड़कीले और ज्वलनशील
शब्दों को खुरचकर,
ठंडे और गहरे
समुंदरों के स्याह अँधेरों में
डुबो दो बुझने तक।
उनके कुंद और बुझने तक
तलाशने चाहिए कुछ
कर्णप्रिय ओर दोषरहित शब्द
जो यथावत रखें
अपना अभिप्राय सदियों तक....
-विक्रम
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