रविवार, अक्तूबर 18, 2015

बड़ी बहू

बड़ी बहू
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आज फिर सामने वाले घर से सास दयावती अपनी बड़ी बहू  मीना पर चिल्ला रही थी, जो इस बात का संकेत था की अब बड़ी बहू पर उसके पति भीमा के हाथों , दरवाजे के पास कुत्तों को भगाने के लिए संभालकर रखी हुई छड़ी बरसने वाली हैं  । सास दयावती अपने नाम के विपरीत स्वभाव वाली औरत थी , जिसे अपनी मंदबुद्धि बड़ी बहू मीना फूटी आँख ना सुहाती थी । पाँच साल पहले मीना के मायके वालों से अच्छा दहेज मिलने का प्रलोभन मिला तो झट से अपने अनपढ़ बड़े बेटे भीमा की शादी मंदबुद्धि मीना से कर दी थी । भीमा की शादी के एक महीने बाद  ही उसके छोटे भाई सागर ,जो फौज मे नोकरी करता था, की शादी भी करदी गई । चूंकि मीना के हाथ का बनाया खाना कोई खाना नहीं चाहता था और  भीमा की माँ दयावती के पैरों की तकलीफ के चलते कोई खाना बनाने वाला नहीं था । मीना को पूर्णरूप से मंदबुद्धि कहना भी न्यायोचित नहीं होगा , हाँ वो भोली जरूर थी।  भीमा जब भी खेत से आता तो वो सबसे पहले उसके लिए नहाने को गर्म पानी और तौलिया  रख देती , जब तब भीमा नहाता वो उसके आगे पीछे घूमती रहती। नहाने के बाद कटोरी मे हल्का गर्म किया सरसों का तेल लेकर उसके पैरों की मालिश करती । दिनभर मैली कुचैली साड़ी को लेपेटे पशुओं के चारे पानी से लेकर घर के झाड़ू फटके  मे व्यस्त रहने वाली मंदबुद्धि कैसे हो सकती है ?

उस से रसोई का काम नहीं करवाया जाता , यहाँ तक की उसके खाने का बर्तन भी अलग से उसके कमरे मे पड़ा रहता जिसमे घर के बच्चे बचा हुआ खाना डाल देते थे। जब भीमा के खाना खाने का वक़्त होता तो मीना वहाँ से हट जाती । छोटी बहू एक हाथ से घूँघट और एक हाथ से थाली पकड़े  चारपाई पर बैठे भीमा को खाना देती  और फिर छोटी बहू के बच्चे भीमा के साथ ही खाने लगते जिनहे भीमा बहुत प्यार करता था । मीना अपनी पाँच साल की इकलौती बेटी लाली को गोद मे बैठाये भीमा और बच्चों को खाना खाते देखकर मुस्कराती रहती । भीमा खाना खाने के बाद घर के बाहर आहते मे जाकर सो जाता और मीना अपनी बेटी का हाथ पकड़ अपने कोठरीनुमा कमरे मे ले जाती और दोनों माँ बेटी कोने मे एक बर्तन मे पड़ा खाना खाकर वहीं नीचे जमीन पे सो जाती । यही दिनचर्या थी जिसमे कभी कोई बदलाव नहीं होता था। भीमा का शादी की पहली रात के बाद अपनी पत्नी मीना, और जन्म से अपनी बेटी मे कोई दिलचस्पी नहीं थी । उसका मीना से बस इतना संबंध था की जब भी उसकी माँ दयावती किसी बात को लेकर मीना से  लड़ाई झगड़ा करती तो भीमा एक रस्म की भांति दरवाजे के पास यथावत रखी छड़ी उठाता और मीना की पीठ और टांगों पर जी भरके बरसाकर  उसे फिर से वहीं रख देता । अपनी चीख़ों को दबाये मीना अपने कमरे मे डरी सहमी बेटी को सिने से लगा ढाढ़स बंधाने लगती।
   
“खड़ी हो कलमुँही दिन निकल आया “, सास दयावती ने मीना की कमर पर लात मारते हुये कहा ।

“जी ...जी माजी”, कहती हुई मीना ने कोने पे पड़ी झाड़ू उठाई और घर के बाहर अहाते मे तेजी से झाड़ू लगाने लगी। वहीं बाहर चबूतरे पर बैठा भीमा नीम की दातुन से अपने दांत रगड़ रहा था। मीना ने झाड़ू लगाते लगाते भीमा के चारों तरफ चाय का कप ना देखकर  कहाँ ,”आज आपको चाय नहीं मिली जी   ? “।

“पी चुका ” , भीमा ने थूकते हुये रूखे  स्वर मे कहाँ और फिर से अपने दांत रगड़ने लगा ।

मीना जल्दी जल्दी अपना काम निपटा रही थी। छोटी बहू रसोई मे सबके खाने के इंतजाम मे जुटी थी , सास अपनी चारपाई पर बैठी माला फेरते हुई  आँगन मे झाड़ू लगाती मीना को देख अलग अलग तरह के मुँह बना रही थी । मीना रसोई के आस पास बार बार झाड़ू मार रही थी ,की शायद छोटी बहू कुछ खाने पीने को दे दे । छोटी बहू अपने बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करते करते हुये मीना से बोली ,”भैंसों को चारा डालकर आ उनके दुहने का वक्त हो गया”।

“बिना कहे इस महारानी को समझ थोड़े ही आता है “, सास दयावती ने चाय की चुस्की लेते हुये  छोटी बहू की बात का समर्थन करके मीना की तरफ आंखे तरेरते हुये कहा ।

मीना झाड़ू को अपने कमरे मे रख नींद में सोई अपनी बेटी के सिर पर हाथ फिराकर घर के पिछवाड़े  में पशुओं की देखभाल करने निकल गई।

भीमा ने दूध की बाल्टी माँ के पास रखी और खेतों मे निकल गया। दोपहर तक सीमा भी पशुओं की देखभाल के  बाद अपनी मैली साड़ी से पसीने पोछते हुये अपने कमरे मे आ गई जहां उसकी बेटी कोने मे पड़े बर्तन में खाना खा रही थी।    

 वक़्त बदलाव की आश मे निरंतर बीत रहा था।

आज 30 सालों बाद हालात बिलकुल बदल चुके थे । भीमा का भाई सागर नोकरी से रिटायर्ड होकर घर आ चुका था , दोनों भाईयों मे घर का बंटवारा हो चुका था। घर सागर ने कब्जा लिया था और  भीमा और मीना को घर के पिछवाड़े मे पशुओं के बाड़े के पास बने कच्चे मकान मे भेज दिया था । मीना की बेटी की शादी हो चुकी थी जो अपने ससुराल मे खुश थी। सास दयावती का भी भगवान के घर से बुलावा आ चुका था। भीमा काफी बूढ़ा हो चुका था और अस्वस्थ भी रहता था । मीना उसका पूरा ख्याल रखती थी। कभी मीना की परछाई से नफरत करने वाला भीमा अब बुढ़ापे मे मीना की हाथों से बनी रोटियाँ बिना ना-नुकर के खा रहा था। सागर के वो छोटे बच्चे जो अब बड़े हो चुके थे और जो कभी भीमा से चिपके रहते थे, वो अब भीमा की तरफ देखते भी नहीं  । 

कुछ वर्षों बाद कमजोरी और बीमारी से भीमा भी चल बसा और मीना को उसकी बेटी अपने साथ लेकर अपनी ससुराल आ गई । मीना अब चारपाई पर बैठी रहती है । उसकी बेटी अपनी बूढ़ी माँ को  वो सब सुख दे देना चाहती  है जिनसे उसकी माँ सदा महरूम रही थी।
  
"विक्रम"


शनिवार, अक्तूबर 17, 2015

भूला

घर की चौखट पे
दोनों हाथ टिकाये
वो आज भी उस गली के
दूसरे छोर तक नज़रों
को बिछाये बैठी है ,
जिस गली से गुजरकर
मुद्दतों पहले कोई
चला गया......

शामों को अक्सर
हल्के अंधरे में ,
गली से गुजरता हर
साया उसे
जाना-पहचाना सा
नज़र आता ,
मगर  पास आने पर....
उसकी नजरें फिर से
गली के आख़िरी छोर
पर लौट जाती , फिर से
किसी भूले को घर
वापिस लाने  ......   

 "विक्रम"




शनिवार, अक्तूबर 03, 2015

मौन स्वीकृतियाँ

अधबुने शब्दों की
तुम्हारी मौन स्वीकृतियाँ,
दर्ज़ हैं , ज़हन की
गहन स्मृतियों में...

मैं अक्सर,
अन्तर्मन के विद्रोह
में उलझा रहा,
और जूझता रहा
विकल्पों की भ्रांतियों में....

कालकल्पित ख्वाबों के
जीर्ण शीर्ण आधार
,
बहुत पीछे छोड़ दिये
वक़्त की स्फूर्तियों ने....


“विक्रम”

नुकीले शब्द

कम्युनल-सेकुलर,  सहिष्णुता-असहिष्णुता  जैसे शब्द बार बार इस्तेमाल से  घिस-घिसकर  नुकीले ओर पैने हो गए हैं ,  उन्हे शब्दकोशों से खींचकर  किसी...

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