टूटे फूटे से अरमान उठा लाया हूँ
ताकि पहचान सको बरसों बाद मुझे
वो खिड़की ,वो पगडंडी ,वो छत की मुंडेर ...
कुछ भी तो नहीं बदला |
फिर क्यों है अनजाना सा हर एक लम्हा,
क्यों पसरी है ख़ामोशी
उस खिड़की से लेकर
सामने के बंद दरवाजे तक |
जहाँ कभी निष्प्राण से निहारते थे ,
लयबद्ध धडकते दो जवां दिल |
नजरो की कोमल सलाइयों से
बुना करते थे हसीन खवाब |
सामने की वो झील सूख चुकी है
जहाँ रात भर झींगुर गाते थे |
धुप या बरसात का बहाना बना
पीछे खड़ा वो पेड़ भी मुरझा चूका है |
छत का वो कोना मायूस पड़ा है
जहाँ कभी हसीन ख्वाब मचलते थे
वो मुंडेर भी उन संजीदा यादों को
बचा न सकी वक्त के थपेड़ों से
सड़क बन चुकी वो पतली सी पगडंडी ,
पथरों में दब गई किनारों की वो हरी घास
प्रतिस्पर्धा रखते हैं मेरे अरमानों से
छत पे खाली पड़े टूटे फूटे से गमले
"विक्रम"
बहुत सुंदर प्रस्तुति,भावपूर्ण अच्छी रचना,..
जवाब देंहटाएंWELCOME TO NEW POST --26 जनवरी आया है....
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए.....
WELCOME TO MY NEW POST --26 जनवरी आया है....
हटाएंसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ उम्दा प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता । हार्दिक धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर, समय के आगे कौन टिका है!
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
जवाब देंहटाएंबसंत पचंमी की शुभकामनाएँ।
bahut sundar kavita ...adhunikikaran ka prbhav bata rahi hai ...bahut sundar kavita
जवाब देंहटाएंअति उत्तम......
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी की शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंविक्रम जी आपकी यह कविता पड़कर मुझे भी अपने गांव का दृश्य नजर आ रहा है! अच्छी रचना है बधाई !!
जवाब देंहटाएंbehad prabhaavshaali rachna, sach mein gaanv ab gaanv nahin rahe, pattharon mein chun diye gaye...
जवाब देंहटाएंसड़क बन चुकी वो पतली सी पगडंडी ,
पथरों में दब गई किनारों की वो हरी घास
प्रतिस्पर्धा रखते हैं मेरे अरमानों से
छत पे खाली पड़े टूटे फूटे से गमले
bahut hi sundar prabhavshali rachana lagi..... badhai.
जवाब देंहटाएंगहरी अभिव्यक्ति लिए पंक्तियाँ ....गाँव छूटा बहुत कुछ छूट जाता है....
जवाब देंहटाएंप्रेम की कोमल भावनाओं की अक्षुण्णता में ही संबंधों की गरिमा है।
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
bahut bhavmayi rachna....kuch naya padhne ko mila..aabhar
जवाब देंहटाएंअपने अतीत के प्रति अनुराग मानव स्वभाव में है. बहुत सुंदर रचना है.
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