बुधवार, जनवरी 25, 2012

टूटे फूटे अरमान




टूटे फूटे से अरमान उठा  लाया हूँ  
ताकि  पहचान  सको बरसों बाद  मुझे  
वो खिड़की ,वो पगडंडी ,वो छत की मुंडेर ...  
कुछ भी तो नहीं बदला |

फिर क्यों है अनजाना सा  हर एक लम्हा,
क्यों पसरी है ख़ामोशी 
उस खिड़की से लेकर 
सामने के बंद दरवाजे तक  |     
जहाँ कभी निष्प्राण से निहारते थे ,
लयबद्ध  धडकते  दो जवां दिल |
नजरो की  कोमल सलाइयों  से
बुना करते थे  हसीन खवाब |

सामने की वो झील सूख  चुकी है   
जहाँ रात भर झींगुर गाते थे  |
धुप या बरसात का बहाना  बना  
पीछे खड़ा  वो पेड़  भी मुरझा  चूका है |


छत का वो कोना   मायूस  पड़ा   है 
जहाँ कभी हसीन  ख्वाब मचलते थे 
वो मुंडेर भी उन संजीदा यादों को
बचा न सकी वक्त के थपेड़ों  से   


सड़क  बन  चुकी वो पतली सी पगडंडी ,
पथरों में दब गई  किनारों की वो हरी घास
प्रतिस्पर्धा रखते हैं  मेरे अरमानों से
छत पे खाली पड़े  टूटे फूटे से  गमले 

"विक्रम"

17 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति,भावपूर्ण अच्छी रचना,..
    WELCOME TO NEW POST --26 जनवरी आया है....
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए.....

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  2. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ उम्दा प्रस्तुती!

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  3. बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
    बसंत पचंमी की शुभकामनाएँ।

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  4. bahut sundar kavita ...adhunikikaran ka prbhav bata rahi hai ...bahut sundar kavita

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  5. बसंत पंचमी की शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  6. विक्रम जी आपकी यह कविता पड़कर मुझे भी अपने गांव का दृश्य नजर आ रहा है! अच्छी रचना है बधाई !!

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  7. behad prabhaavshaali rachna, sach mein gaanv ab gaanv nahin rahe, pattharon mein chun diye gaye...

    सड़क बन चुकी वो पतली सी पगडंडी ,
    पथरों में दब गई किनारों की वो हरी घास
    प्रतिस्पर्धा रखते हैं मेरे अरमानों से
    छत पे खाली पड़े टूटे फूटे से गमले

    जवाब देंहटाएं
  8. गहरी अभिव्यक्ति लिए पंक्तियाँ ....गाँव छूटा बहुत कुछ छूट जाता है....

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  9. प्रेम की कोमल भावनाओं की अक्षुण्णता में ही संबंधों की गरिमा है।

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  10. बहुत बेहतरीन....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  11. bahut bhavmayi rachna....kuch naya padhne ko mila..aabhar

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  12. अपने अतीत के प्रति अनुराग मानव स्वभाव में है. बहुत सुंदर रचना है.

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