सोमवार, दिसंबर 05, 2011

पिता

घुटनों पर हाथ रखकर उठने वाले रघु चाचा आज हवा से  बातें कर रहे थे । घर से बाज़ार और बाजार से घर के बीच दिनभर दोड़ते रहे । घर के कोने कोने में झांक कर हर एक चीज की कई कई बार तसल्ली कर चुके थे । रसोई के सभी बर्तन साफ करके करीने से सजा दिए गए थे ,गन्दा सिंक भी आज अपने वास्तविक रूप में आ गया था तथा उसके चारों तरफ जमी काई (सिवार) उतर चुकी थी।  घर के आगे बने चबूतरे पर सोने वाला कुत्ता भी आज अपनी मनपसंद जगह पर नहीं सो पाया रघु चाचा ने वहां पर आज अपनी चारपाई डाल रखी थी तथा कुत्ते को पिछवाड़े खड़े एक पेड़ से बांध दिया था।

घर का एकलौता शयन कक्ष आज अपनी पहचान पाकर खुश लग रहा था । रघु चाचा की पिछले 10दिन की मेहनत आज घर के कोने कोने से नजर आ रही थी आज सालभर बाद उनका बेटा नवीन और बहु सुमन महीने भर के लिए शहर से गाँव आ रहे थे। रघु चाचा के बेटे नवीन ने अपनी मनपसंद की लड़की से पिछले साल विवाह कर लिया था। विवाह से ठीक एक दिन पहले रघु चाचा को फ़ोन से इतल्ला करदी थी। उस दिन रघु चाचा बहुत रोये थे , मगर बेटे की ख़ुशी के आगे घुटने टेक दिए और फोन पर ही बेटे को आशीर्वाद देकर पिता होने का फ़र्ज़ पूरा कर दिया था।

वक़्त के साथ साथ रघु चाचा , बेटे द्वारा की गई उपेक्षा को भूल गए और आज बेटे के स्वागत के लिए तैयार होने लगे। निर्मला चाची के देहांत के समय नवीन मात्र 10साल का था ,तब से रघु चाचा ने नवीन को माँ बनकर पाला था । नवीन पच्चीस साल का हो चूका था मगर रघु चाचा उसे आज भी 10 साल का बच्चा समझ खुद उसके लिए खाना बनाते थे । मगर आज रघु चाचा अपनी बहु के हाथ का बना खाना खायेंगे। बरसों बाद पका पकाया खाने को मिलेगा। खाने का ख्याल आते ही रघु चाचा फिर से रसोई में रखी हर सामग्री का मुआयना करते की कहीं कुछ कमी ना रह जाये वरना बहु  क्या सोचेगी।

पूरी तस्सली होने के बाद बाहर चबूतरे पे पड़ी चारपाई पर आकर बैठ गए और बहु के आने के बाद की घटनाओं को मन ही मन सोचकर मुस्कराने लगे। आते ही बहु रसोईघर में घुस गई ,कुछ पलों बाद खाने की महक घर की दीवारें लांघकर चबूतरे पर बैठे रघु चाचा के नथुनों तक जा पहुंची और इसके बाद रघु चाचा एक लम्बी साँस लेकर मुश्कराए और पैर फैलाकर लेट गए।

अचानक बजी फ़ोन की घंटी ने रघु चाचा को यथार्थ के धरातल पर जोर से पटका और उसके बाद आँख मलते हुए अन्दर भागे । फ़ोन का चोंगा उठाते ही दूसरी तरफ से नवीन की आवाज़ आई,  "पापा..." , पापा....वो.., आज सुमन की मम्मी हमारे पास आई हुई हैं , वो अभी चार पांच महीने हमारे साथ ही रहेंगी, .. तो.. इसलिए , इस बार हम नहीं आयेंगे पापा , आप अपना ख्याल रखिएगा । इतना कहकर दूसरी तरफ से बिना कुछ सुने फ़ोन काट दिया।


विक्रम

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रविष्टि.। मेरे नए पोस्ट 'आरसी प्रसाद. सिंह" पर आकर मुझे प्रोत्साहित करें ।.बधाई ।

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  2. राजपूत जी,...
    माँ बाप के जज्बात क्या होते है
    आज कल के बच्चे नहीं समझते ,.....सुंदर पोस्ट बधाई
    मेरे पोस्ट पर आइये,.....और पढ़े.......

    आज चली कुछ ऐसी बातें, बातों पर हो जाएँ बातें

    ममता मयी हैं माँ की बातें, शिक्षा देती गुरु की बातें
    अच्छी और बुरी कुछ बातें, है गंभीर बहुत सी बातें
    कभी कभी भरमाती बातें, है इतिहास बनाती बातें
    युगों युगों तक चलती बातें, कुछ होतीं हैं ऎसी बातें

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  3. भावनात्मक प्रस्तुति कही पिता का इंतज़ार तो कही भावनाओं को ठेस पहुंचता इंसान , पर फिर भी वास्तविकता यही जिंदगी के पहलु से रूबरू करवाता खूबसूरत लेख |

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  4. hamari peedhi aisi hi ho gayi hai...samjhane se bilkul nahi samajhti....jab tak khud ko thokar n lage...lekin tab tak bahut dair ho chuki hoti hai...

    bahut dard samaita hai aaj k katu saty ko darshate hue. sateek laghu katha.

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  5. होसला अफजाई के लिए आप सभी बहुत बहुत शुक्रिया | लिंक बनाये रखियेगा .
    आभार

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  6. बहुत सुन्दर और शानदार रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

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  7. आज की पीढ़ी ज्यादा प्रेक्टिकल हो गयी है...आत्मकेंद्रित...शायद वक्त ही ऐसा है.

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  8. आज की पीढ़ी को क्या कहे हर घर की यही कहानी बहुत मार्मिक
    सच्चाई से भरीकहानी
    आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा

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  9. क्या बोलूं? अब तक मेरा सत्य नही है यह.पर...... तैयार हूँ ऐसे सत्य के लिए भी.छोटे शहरों मे इतनी निर्मम नही हुई है नई पीढ़ी.
    बच्चों की अपनी जिम्मेदारियां,मजबूरियां होती है. यह याद रखें तो तकलीफ कम होगी. अच्छी रचना है मर्म को छूती है.सत्य किसी भी जगह का हो ऐसा सत्य डरा देता है.

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