गुरुवार, सितंबर 17, 2015

धुंधले पन्ने

अतीत के धुंधले पन्नो पे,
वो आधी अधूरी तहरीरें
आज भी  यथावत हैं ।

उन सिकुड़े सफ़ों पे
मुज़ाकरातों के कुछ अधूरे
सिलसिले भी दर्ज़ है ।

ज़हन से खरोंचे अल्फ़ाज़
ख़ामोशीयों के आगोश में
सिमटकर  बैठे हैं  

उफ़्क तक फैले सफ़ों में,
मुख़्तसर  मुलाकातों की,
इबादतों के असआर  गायब है ।

मुखतलिफ़  हिस्सों में
वस्ल की तिश्नगी पे हिज़्र की
सूखी स्याही  फैली है ।

आओ रखलें सहेजकर
इन्हे , ज़हन के किसी
कोने मे तसव्वुर की तरह  

"विक्रम"

शनिवार, सितंबर 05, 2015

वक़्त की परतें

वक़्त की मोटी परतों
को उठाकर देखना !
मासूम ख्वाबों की लाशों पे ,
तुम्हेंचीखते जज़्बात  मिलेंगे,
फफक कर सुबकती   
अधपकी मुलाकातें मिलेंगी,
वक़्त का कफ़न भी  
कुछ तार तार मिलेगा ,
अस्थिपंजर बन चुकी
पुरानी यादें भी मिलेंगी,
फफूंद लगे दिन और
बूढ़ी शामें भी मिलेंगी,
कब्र मे लेटी रातों के साथ
मरे हुये अबोध सपने भी मिलेंगे,
सलवटों भरे ताल्लुकात और
सूखे  अल्फ़ाज़ भी मिलेंगे

“विक्रम”

















नुकीले शब्द

कम्युनल-सेकुलर,  सहिष्णुता-असहिष्णुता  जैसे शब्द बार बार इस्तेमाल से  घिस-घिसकर  नुकीले ओर पैने हो गए हैं ,  उन्हे शब्दकोशों से खींचकर  किसी...

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