रविवार, अक्तूबर 15, 2017

दर-ब-दर

बालिश्त दर बालिश्त
गुजरती उम्र,
गिनती रही पोरों
पे वो पड़ाव ,जो
बदलते रहे मायने
ज़िंदगी के ,
यादों की पुनरावृतियां
लाती रही सुनामीयां, 
बस यूँ कटता रहा
उबाऊ सफर
अनिश्चितताओं
के संग
दर-ब-दर..... बदस्तूर....

"विक्रम"

रविवार, अक्तूबर 08, 2017

अतीत

वक़्त के घोड़े पे सवार,
अतीत को पहलू में दबा , 
भागता रहा वो ताउम्र, 
मगर....
यादों के नुकीले तीर,
भेदते रहे,उसके
जिस्म-ओ-जान को,
और नोचते रहे ,
ज़हन से चिपके
अतीत के उस
हर एक लम्हे को….
-ak
 
 
 
 

शनिवार, अक्तूबर 07, 2017

यादों की जुंबिश

 

सुषुप्त शरीर में,
सिहरन-सी 
भर देती हैं 
यादों की एक 
हल्की-सी जुंबिश,
मगर....
बाद इसके
अंदर से कुछ 
यूँ टुकड़ों में 
बिखर जाता है,
बाद तूफान के
बिखरता है कोई 
आशियाना जैसे.....

 
"विक्रम"


नुकीले शब्द

कम्युनल-सेकुलर,  सहिष्णुता-असहिष्णुता  जैसे शब्द बार बार इस्तेमाल से  घिस-घिसकर  नुकीले ओर पैने हो गए हैं ,  उन्हे शब्दकोशों से खींचकर  किसी...

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