शनिवार, मई 18, 2013

माँ

हैलो माँ ... में रवि बोल रहा हूँ.... , कैसी हो माँ.... ?
 
मैं.... मैं ठीक हूँ बेटे..... , ये बताओ तुम और बहू दोनों कैसे हो ?
 
हम दोनों ठीक है माँ...आपकी बहुत याद आती है, ...अच्छा सुनो माँ , में अगले महीने इंडिया आ रहा हूँ..... तुम्हें लेने।
 
क्या... ?
 
हाँ माँ.... , अब हम सब साथ ही रहेंगे...., नीतू कह रही थी माज़ी को अमेरिका ले आओ वहाँ अकेली बहुत परेशान हो रही होंगी। हैलो ....सुन रही हो माँ...?
“हाँ...हाँ बेटे...“, बूढ़ी आंखो से खुशी की अश्रुधारा बह निकली, बेटे और बहू का प्यार नस नस में दौड़ने लगा। जीवन के सत्तर साल गुजार चुकी  सावित्री ने जल्दी से अपने पल्लू से आँसू पोंछे और बेटे से बात करने लगी।
पूरे दो साल बाद बेटा घर आ रहा था। बूढ़ी सावित्री ने मोहल्ले भर मे दौड़ दौड़ कर ये खबर सबको सुना दी। सभी खुश थे की चलो बुढ़ापा चैन से बेटे और बहू के साथ गुजर जाएगा।
रवि अकेला आया था , उसने कहा की माँ हमे जल्दी ही वापिस जाना है इसलिए जो भी रुपया पैसा किसी से लेना है वो लेकर रखलों और तब तक मे किसी प्रोपेर्टी डीलर से मकान की बात करता हूँ।
“मकान...?”, माँ ने पूछा।
हाँ माँ, अब ये मकान बेचना पड़ेगा वरना कौन इसकी देखभाल करेगा। हम सब तो अब अमेरिका मे ही रहेंगे। बूढ़ी आंखो ने मकान के कोने कोने को ऐसे निहारा जैसे किसी अबोध बच्चे को सहला रही हो।
आनन फानन और औने-पौने दाम मे रवि ने मकान बेच दिया। सावित्री देवी ने वो जरूरी सामान समेटा जिस से उनको बहुत ज्यादा लगाव था। रवि टैक्सी मँगवा चुका था।
एयरपोर्ट पहुँचकर रवि ने कहा ,”माँ तुम यहाँ बैठो मे अंदर जाकर सामान की जांच और बोर्डिंग और विजा का काम निपटा लेता हूँ। “
“ठीक है बेटे। “, सावित्री देवी वही पास की बेंच पर बैठ गई।
काफी समय बीत चुका था। बाहर बैठी सावित्री देवी बार बार उस दरवाजे की तरफ देख रही थी जिसमे रवि गया था लेकिन अभी तक बाहर नहीं आया। शायद अंदर बहुत भीड़ होगी... , सोचकर बूढ़ी आंखे फिर से टकटकी लगाए देखने लगती।
अंधेरा हो चुका था। एयरपोर्ट के बाहर गहमागहमी कम हो चुकी थी।
“माजी..., किस से मिलना है ?”, एक कर्मचारी ने वृद्धा से पूछा ।
“मेरा बेटा अंदर गया था..... टिकिट लेने , वो मुझे अमेरिका लेकर जा रहा है ....”, सावित्री देबी ने घबराकर कहा।
“लेकिन अंदर तो कोई पैसेंजर नहीं है , अमेरिका जाने वाली फ्लाइट तो दोपहर मे ही चली गई। क्या नाम था आपके बेटे का ?”, कर्मचारी ने सवाल किया।
“र....रवि....”, सावित्री के चेहरे पे चिंता की लकीरें उभर आई। कर्मचारी अंदर गया और कुछ देर बाद बाहर आकर बोला, “माजी.... आपका बेटा रवि तो अमेरिका जाने वाली फ्लाइट से कब का जा चुका...।”
“क्या.....”, वृद्धा की आंखो से गरम आँसुओं का सैलाब फुट पड़ा। बूढ़ी माँ का रोम रोम कांप उठा।
किसी तरह वापिस घर पहुंची जो अब बिक चुका था।
रात में घर के बाहर चबूतरे पर ही सो गई।
सुबह हुई तो दयालु मकान मालिक ने एक कमरा रहने को दे दिया। पति की पेंशन से घर का किराया और खाने का काम चलने लगा। समय गुजरने लगा। एक दिन मकान मालिक ने वृद्धा से पूछा।
“माजी... क्यों नही आप अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ चली जाए, अब आपकी उम्र भी बहुत हो गई, अकेली कब तक रह पाएँगी।
“हाँ, चली तो जाऊँ, लेकिन कल को मेरा बेटा आया तो..?, यहाँ फिर कौन उसका ख्याल रखेगा?
 
“विक्रम”
 

17 टिप्‍पणियां:

  1. बिक्रम सिंह शेखावत18 मई 2013 को 6:44 pm बजे

    बहुत सुन्दर आपने समाज के एक कटु सत्य को उजागर किया है

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  2. लगभग हर घर की कहानी
    दिल को छू गयी ,,,,बधाई दादा

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  3. भावुक कर दिया आपने, बहुत की मार्मिक कहानी। सचमुच मां तो मां ही होती है।

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  4. सच कहूँ तो माँ के लिए दुःख से ज्यादा ,बेटे पर आक्रोशित हूँ .....

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  5. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन संभालिए महा ज्ञान - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  6. मार्मिक कहानी !
    ऐसे बेटे अपने आस-पास भी बहुत मिल जाते है !!

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  7. अंतर्मन को झकझोर देने वाली मार्मिक कहानी जिसमें वो बेटा तो बेटा क्या मनुष्य कहलाने का भी अधिकारी नहीं है फिर भी माँ के हदय कि विशालता को दिखाती है यह कहानी !!

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  8. Dil ko chhoone vaali kahani aur saath mein liye hue ek sabak.Saraahneey dost!!

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  9. बहुत मर्मस्पर्शी कहानी...कहानी का अंतिम वाक्य दिल को छू गया...

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  10. ना सचमुच माँ ही होती है ...
    बस वो ही ऐसी हो सकती है ... ओलाद तो कभी बराबरी नहीं कर सकती ...
    लानत है ऐसे बेटों पे ... आज को देख के लगता है ऐसा हो सकता है ...

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  11. मार्मिक रचना ,ऐसे नालायकों की कमी नहीं

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  12. ji suni thi ye kahaani .....
    ek taraf maa ka dil hai aur dusri taraf nalayak beta ....

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  13. “हाँ, चली तो जाऊँ, लेकिन कल को मेरा बेटा आया तो..?, यहाँ फिर कौन उसका ख्याल रखेगा?“
    .......तभी तो कहते हैं माँ माँ होती हैं नालायक भी बेटा भी हो तो फिर भी वह उसका ही भला चाहती हैं उसकी ही बात करते हैं हर समय, उसके लिए ही सोचती रहती है जीवन भर ....
    ...आधुनिकता की अंधी दौड़ में शामिल लोगों के मुहं पर यह करारा तमाचा है
    गंभीर चिंतन से भरी प्रस्तुति के लिए आपका आभार

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  14. बहुत मार्मिक लगी कहानी ...पता नहीं आजकल के बच्चे इतने
    स्वार्थी कैसे बन गए ?

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