बुधवार, जनवरी 25, 2012

टूटे फूटे अरमान




टूटे फूटे से अरमान उठा  लाया हूँ  
ताकि  पहचान  सको बरसों बाद  मुझे  
वो खिड़की ,वो पगडंडी ,वो छत की मुंडेर ...  
कुछ भी तो नहीं बदला |

फिर क्यों है अनजाना सा  हर एक लम्हा,
क्यों पसरी है ख़ामोशी 
उस खिड़की से लेकर 
सामने के बंद दरवाजे तक  |     
जहाँ कभी निष्प्राण से निहारते थे ,
लयबद्ध  धडकते  दो जवां दिल |
नजरो की  कोमल सलाइयों  से
बुना करते थे  हसीन खवाब |

सामने की वो झील सूख  चुकी है   
जहाँ रात भर झींगुर गाते थे  |
धुप या बरसात का बहाना  बना  
पीछे खड़ा  वो पेड़  भी मुरझा  चूका है |


छत का वो कोना   मायूस  पड़ा   है 
जहाँ कभी हसीन  ख्वाब मचलते थे 
वो मुंडेर भी उन संजीदा यादों को
बचा न सकी वक्त के थपेड़ों  से   


सड़क  बन  चुकी वो पतली सी पगडंडी ,
पथरों में दब गई  किनारों की वो हरी घास
प्रतिस्पर्धा रखते हैं  मेरे अरमानों से
छत पे खाली पड़े  टूटे फूटे से  गमले 

"विक्रम"

गुरुवार, जनवरी 12, 2012

उत्तर भारत बनाम दक्षिण भारत



में उत्तर भारत से सम्बन्ध रखता हूँ मगर पिछले लगभग एक दशक से दक्षिण भारत में रह रहा हूँ .इस दौरान मैंने उत्तर भारत तथा दक्षिण भारत में बहुत सा फर्क देखा है , जिसमे खान पान, रहन सहन , वेशभूषा से लेकर आचरण तक शामिल है .आज में कुछ खास बातों का जिक्र करूँगा जो हमें उत्तर भारत में देखने को नहीं मिलती.यहाँ के लोग बहुत धर्मिक प्रवर्ती के होते हैं . यहाँ पर चोरियां बहुत कम होती है. लोगों को सरेआम झगड़ते हुए शायद ही कभी देखा जाता है . बस या रेल की टिकिट के लिए आपको बहुत कम इन्तजार करना पड़ता है , तथा टिकिट के लिए आपको छुट्टे पैसे देने के लिए मजबूर नहीं किया जाता जैसा की उत्तर भारत में अमूमन देखा जाता है . यहाँ के सरकारी कर्मचारी भी आप से बहुत अपनत्व से बात करते है .


नई तकनीक को इन राज्यों ने बहुत अपनाया है , राशन कार्ड , गैस बुकिंग ,टिकटिंग ,टैक्स , टेलीफ़ोन बिल जैसे काम ऑनलाइन कर सकते हैं .शिक्षा के क्षेत्र में तो दक्षिण भारत के ये ४ राज्य सदा अवल ही रहे हैं . अकेले कर्नाटक में इतने इंजीनियरिग कोलेज हैं जितने पुरे भारत में नहीं होंगे .


एक से एक भव्य मंदिर यहाँ के हर शहर में देखने को मिलेंगे , मगर एक बात जो यहाँ चुभती है वो है मंदिर में भगवान के दर्शन के लिए आपको पैसे देने पड़ते हैं . और उसपे भी अगर आपको दर्शन करने की जल्दी है तो आप जितने ज्यादा पैसे देंगे उतनी जल्दी आपको दर्शन करने को मिलेंगे . मंदिरों में दान देने के मामले में यहाँ के लोग सबसे आगे हैं .

कोई चाहे कितना भी गरीब हो अगर उसकी मनोकामना पूर्ण हो गई तो वो अपने पास के पुरे पैसे जेवरात तक मंदिर के दान बॉक्स में डाल देता है , यानी भगवान को दान देने में तो भामाशाह जैसा दिल है .तिरुपति बालाजी का मंदिर पूरी दुनिया में सबसे धनाढ्य मंदिर है , जहाँ साल में करोड़ो रुपयों के तो बाल बेचे जाते हैं जो दर्शनार्थियों द्वारा मुराद पूरी होने पर कटवाए जाते है. यहाँ तक की औरतें भी अपने पुरे बाल कटवाकर आती हैं मंदिर में . यहाँ पर ९०% लोग सुबह पूजा करने के बाद ही चाय नाश्ता करते हैं पूरा परिवार सुबह नहाकर पूजा करता है . औरतें बिना घर के आगे रंगोली बनाये कोई काम नहीं करती , उनके द्वारा कुछ ही मिनिटों में घर के आगे बनी गई रंग बिरंगी रंगोली हर किसी का दिल मोह लेती है .

चाय से लेकर सब्जी बेचने वाला तक अगर हिंदी ना भी समझे तो भी आपको अंग्रेजी में वन टू थ्री बोलकर समझा देगा , लेकिन ज्यतादर आपसे हिंदी में वार्तालाप की कोशिश करेंगे . क्या हम उत्तर भारत में कभी किसी दक्षिण भारतीय से उसकी भाषा में एक शब्द भी बोलते हैं ? नहीं


शराब के मामले भी दक्षिण भारत के लोग उत्तर भारत के लोगों से आगे हैं .पूजा पाठ के साथ शराब के भी बहुत शौकीन है यहाँ के लोग यहाँ पे आपको जहाँ शराब का ठेका मिलेगा उसके आस पास कोई ना कोई मंदिर भी जरुर मिलेगा , और दो चार कदम पे मीट की दुकान भी मिलेगी यानी धर्म और निजी जीवन दोनों का बखूबी तालमेल यहाँ देखने को मिलेगा .दक्षिण भारत के ४ राज्य ( आंध्र प्रदेश , तमिलनाडु,कर्नाटका और केरल ) बाकि देश से कुछ बातों में काफी भिन्न है .तमिलनाडु में हिंदी भाषी लोग ना के बराबर है. पुरे तमिलनाडु में आपको सायद ही कोई हिंदी बोलने या समझने वाला मिलेगा लेकिन इसके विपरीत आंध्रप्रदेश,केरल और कर्नाटका में हिंदी की स्थिति बेहतर है . एक और खास बात है जो  में  आपसे  बाँटना  चाहूँगा  वो है   इन चारों  राज्यों की अलग अलग भाषा. उत्तर भारत  में अधिकतर राज्यों की भाषा एक दुसरे से मिलती जुलती है ,या फिर वो हिंदी बोलकर एक दुसरे से संवाद कर लेते हैं . मगर इधर एक दुसरे की भाषा बिलकूल नहीं समझते ,यहाँ तक की लिपि भी पूरी तरह से अलग है .

 
खान पान के मामले में ४ राज्यों में चावल और चावल से बने अन्य पकवान ही बहुतायत में मिलेंगे केरल में नारियल का तेल सब्जी बनाने में उपयोग में लाया जाता है जो को उत्तर भारतीयों को शायद

ही पसंद हो , दक्षिण भारत में कुछ खास पकवानों के नाम इस तरह हैं , लेमन राईस ,सांभर राईस , इडली , मेदू वडा , रश्म ,डोसा ,उपमा , पोंगल आदि मगर इन सब में ९९% चावल और नारियल जरुर मिलेगा .




यहाँ के त्यौहार भी अलग ही हैं पोंगल, ओणम ,पूरम ,चितिरै कुछ खास त्यौहार हैं . उत्तर भारत की तरह यहाँ होली दिवाली जैसे त्यौहार को लोग कम जानते है इसलिए ना के बराबर ही मनाते है .यहाँ तक की दक्षिण भारत में  पंचाग भी अलग होता है.

मगर चाहे जो भी हो , यही तो पहचान है हिंदुस्तान  की . "विभिन्नता  में एकता "

//विक्रम//


रविवार, जनवरी 08, 2012

दस्तक

  
     स्थिर,निष्प्रभ,निश्तब्ध दिल पे
    गाहे बगाहे दे जाती हो दस्तक
    और छेड़ जाती हो हलचलों का 
     एक अंतहीन सा सिलसिला...




 

इस कशमकश में बटोरने लगता हूँ
उन हसीन पलों को, जो साक्षी थे
कभी उस सफ़र के जो बसर हुआ
बिना कुछ कहे बिना कुछ सुने





बस यही मुसलसल रिश्ता है
हमारे दरमियाँ निभाने को ,
जो बसर हो रहा है शिद्दत से
एक तन्हा सफ़र की तरह .....



में जिंदा हूँ तो बस, वक़्त बेवक्त की
आहटों ,दस्तकों और धडकनों
के धमाकों से गिरी यादों के पलों
को उठाकर सहेजने को ,क्योंकि
कुछ तो बहाना हो नीरस सा जीवन
व्यतित करने को ... . . . .

"विक्रम"





















रविवार, जनवरी 01, 2012

चेहरा




आता है नजर 
वक़्त की धुंध में  एक धुंधला सा चेहरा 
   

बना लेता हूँ   उसके   नयन नक्श फिर
धीरे से उभर आता है तेरा अक्श फिर


हर  रोज यूँ में ख्यालों  में  बनाकर तुम्हे   
बस बैठा लेता हूँ  सामने  सजाकर तुम्हे

रोज की भांति  गिले-शिकवों का  एक दौर
चला हमारे दरमियाँ  इस और  से  उस ओर

 
अंत में हम अनन्त मनुहार के उत्कर्ष पे
जा मिले फिर यूँ प्यार के चरमोत्कर्ष पे

जाता है निखर
यूँ  प्यार के द्वंद  में  दूध सा धुला  चेहरा 

"विक्रम"
    

नुकीले शब्द

कम्युनल-सेकुलर,  सहिष्णुता-असहिष्णुता  जैसे शब्द बार बार इस्तेमाल से  घिस-घिसकर  नुकीले ओर पैने हो गए हैं ,  उन्हे शब्दकोशों से खींचकर  किसी...

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