रविवार, नवंबर 24, 2013

वक़्त


वक़्त आज भी उस खिड़की 
पे सहमा सा खड़ा है

भुला कर अपनी
  
गतिशीलता की प्रवर्ती

जिसके दम पर
 
दौड़ा करता था... सरपट
 
और...

फिसलता रहता था मुट्ठी 
में बंद रेत की मानिंद ।


शामें भी उदासियाँ ओढ़े
,
बैठी रहती है उस राहगुजर के
 
दोनों तरफ
, जिनके दरमियाँ  
मसलसल गुजरती
  रहती  हैं 
स्तब्ध
, तन्हा ,व्याकुल  रातें

अलसाई-सी भौर
 
भी अब
रहती है ऊँघी
, बेसुध,अनमनी-सी

वो उन्माद भी मुतमईन-सा है
   
जो बेचैन
,बेसब्र सा रहता था 
धूप से नहाई दोपहरी मे ।


 
- “विक्रम”

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब ... गुज़रते हुए भी ठहरा रहता है वक़्त किसी के लिए ... उदासी ओढ़े ... स्थिर हो जाता है सब कुछ उस वक़्त ...

    जवाब देंहटाएं
  2. वक़्त आज भी उस खिड़की पे...... सहमा सा खड़ा है........ बहुत सुंदर रचना .

    जवाब देंहटाएं
  3. वक्त आज भी उस खिड़की पर सहमा सा खड़ा है बहुत सुंदर रचना

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (25-11-2013) को "उपेक्षा का दंश" (चर्चा मंचःअंक-1441) पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  5. वक़्त की अपनी गति है ...कभी ठहरी सी कभी बहुत तेज़.... सुंदर रचना

    जवाब देंहटाएं
  6. वो उन्माद भी मुतमईन-सा है
    जो बेचैन,बेसब्र सा रहता था
    धूप से नहाई दोपहरी मे ।

    वाह !!! प्रकृति को समेटकर लिखा मन के भीतर का सच
    बहुत सुंदर रचना
    बधाई ------

    जवाब देंहटाएं
  7. रचना अच्छी बन पडी है

    कुछ जड़ी बूटियों को घड़े में हल्दी के साथ बंद करके मैंने एक दवा तैयार की है जो बुढ़ापे के असर को अस्सी प्रतिशत तक कम कर देगी ,नये बाल उग जायेंगे ,टूटे दांत भी निकल सकते हैं हड्डियों और जोड़ों के सारे दर्द गायब हो जायेंगे। अगर आपको चाहिए तो फोन कीजिये मुझको।

    जवाब देंहटाएं

मार्गदर्शन और उत्साह के लिए टिप्पणी बॉक्स हाज़िर है | बिंदास लिखें|
आपका प्रोत्साहन ही आगे लिखने के लिए प्रेरित करेगा |

नुकीले शब्द

कम्युनल-सेकुलर,  सहिष्णुता-असहिष्णुता  जैसे शब्द बार बार इस्तेमाल से  घिस-घिसकर  नुकीले ओर पैने हो गए हैं ,  उन्हे शब्दकोशों से खींचकर  किसी...

Details