रविवार, जून 30, 2013

- दीवारें –

गाँव से उस दिन काकी की मौत की खबर सुनकर बहुत अफसोस हुआ। मेरा उनसे माँ बेटे का सा रिश्ता बन गया था। बचपन मे में रोजाना काकी के घर उनके दोनों बड़े बेटों मोहन और सोहन के साथ खेला करता था। उनके दो और बेटे थे जो उस वक्त बहुत छोटे थे।

काकी मुझे भी अपने बच्चो की भांति प्यार करती थी और में काकी के निश्चल और ममता से सरोबर प्यार मे डूबकर घर जाना ही भूल जाता था। माँ मुझे अक्सर उनके घर से जबर्दस्ती खींच कर घर ले आती थी मगर में फिर से कोई बहाना बनाकर भाग आता था।

में रात मे अक्सर काकी के घर मे ही मोहन और सोहन के साथ सो जाता था। घर काफी बड़ा था लेकिन हम लोग गर्मियों मे घर के बाहर के खुले अहाते मे सोते थे। रातभर खुले आसमान के नीचे खुली हवा मे सोना किसी जन्नत से कम ना होता था। हम सुबहा देर तक सोये रहते। मोहन और सोहन अक्सर उठ जाते थे मगर में सोया रहता। फिर सुबह माँ आती और काकी से बोलती की तुम इसको क्यों उठती, तो काकी कहती सोने दो बच्चा है ,अपने आप उठ जाएगा अभी। लेकिन काकी के मना करने पर माँ मुझे उठाकर घर ले जाती।

वक़्त गुजरता रहा और वक़्त के साथ साथ हम लोग भी बड़े हो गए, मेरी सरकारी नौकरी लगने के बाद हम लोग गाँव से शहर मे ही आकर बस गए, और फिर धीरे धीरे  गाँव में आना जाना भी एक तरह से ख़तम हो गया।

लगभग आठ साल पहले मोहन और सोहन की शादी मे और उसके चार साल बाद बाद उनके दोनों छोटे भाइयों की शादी मे हम लोग गाँव गए थे। काफी सालों बाद काकी से मिला तो काकी देखते ही रो पड़ी और मुझे अपने पास बैठाकर माँ ,बाबूजी और बाकी सदस्यों का हाल पूछती रही और साथ ही मोहन और सोहन की बहूओं को आदेश पे आदेश दिये जा रही थी की लड़के के लिए दूध लेकर आओ, मिठाई लेकर आओ , और हाँ दूध मे मलाई जरुर डालके लाना इसको बहुत पसंद है, कहते हुये काकी हँसकर मेरे सिर पर अपने झुर्रीदार हाथ फिराती।

उसके बाद जब पिछले साल किसी काम से गाँव जाना हुआ तो काकी से मिलने की ललक को नहीं रोक पाया और काकी के घर की तरफ चल पड़ा। उस वक्त काकी से मिले लगभग चार साल हो गए थे। काकी का घर काफी बदला हुआ सा लगा। खुले अहाते के चारों तरफ ऊंची चारदीवारी बना दी गई दी। पहले जहां अहाते मे घुसने का एक ही रास्ता था अब वहाँ चारदीवारी मे अलग अलग चार दरवाजे नजर आ रहे थे। में सोच विचारकर एक दरवाजे मे घुस गया। वहाँ बचपन का दोस्त मोहन बैठा था, उस से मिलने के बाद मैंने पूछा, “काकी कहाँ है  ?” जवाब मे मोहन ने एक तरफ इशारा करके कहा की वहाँ अजय के घर मे हैं। मैं उसका जवाब सुनकर भौचक्का सा रह गया। मोहन से काफी बात करने के बाद पता चला की वो चारों भाई अलग अलग हो गए हैं और अब काकी छोटे बेटे अजय के साथ बगल वाले घर मे रहती है।

में बड़े दुखी मन से मोहन के घर से बाहर आया। मैंने अपने चारों तरफ नजर घुमाकर वो अहाता तलाशने की कोशिश की जहां हमारा बचपन गुजरा था। मगर अब वहाँ सिर्फ दीवारें ही दीवारें नज़र आ रही थी। बाहर आकर चारदीवारी से एक दूसरे घर मे घुसा जो मोहन के अनुसार अजय का था। घर मे घुसते ही  चूल्हे के सामने काकी को बैठा पाया। उनके पास जाकर उनके पैर छूए और पास मे ही जमीन पर बैठ गया। जाड़े का मौसम था सो चूल्हे के सामने बैठकर काकी से बात करके मैं फिर से बचपन में खो जाना चाहता था। मुझे पहचानकर काकी बहुत खुश हुई थी  इस बात का अंदाजा मुझे तब लगा जब चुपके से उन्होने आँचल से खुशी से छलक़ते आँसू पोंछ लिए थे। काकी काफी बूढ़ी लग रही थी। उनके चेहरे से थकान साफ झलक रही थी। वहीं बैठे बैठे काकी ने मेरे लिए चाय बनाई और चाय पीने के दौरान मुझसे परिवार के हालचाल लेती रही।

काकी के साथ काफी वक़्त बिताने के बाद मैंने उनसे विदा लेनी चाही और जवाब मे उन्होने सदा की भांति सिर पर हाथ फिराते हुये कहाँ था, “जब भी गाँव आओ मिलने जरूर आना बेटे, मेरा तो अब कोई भरोसा नहीं कब ऊपर से बुलावा आ जाए , ये कहकर वो हंस पड़ी थी।
 
 -विक्रम
 

10 टिप्‍पणियां:

  1. बचपन के देखे हुए घर- परिवारों के आंगन वास्तव में बहुत छोटे हो गए है , बचपन की सुनहरी यादों से होते हुए मार्मिकता के धरातल पर पंहुचा दिया आपने ।

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  2. आज के जमाने मे यह सब घर घर की कहानी हो गई है
    सुंदर अभिव्यतिक है

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  3. मैं आप की आपबीती पढ़ने में खो गयी... आखों के सामने मंजर आ गये.. दिल भर आया......

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  4. अक्सर यही होता है. अब वो जमाना बीत गया जब घर पडोस के लोग भी अपने ही लगते थे. आज तो भाई भाई दीवारें खींचे खडे हैं, बहुत मार्मिक.

    रामराम.

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  5. आज ये अपनापन कहाँ मिलता है,जो पहले लोगों से मिलता था,,,

    RECENT POST: ब्लोगिंग के दो वर्ष पूरे,

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  6. ये बदलाव मुझे लगता है हमारी सब की मानसिकता में आ गया है ... और भावना की जगह भौतिकता ने ले ली है ...

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  7. अब घरों के आगे ही नहीं गांवों में लोगों के मन में भी दीवारें बन गई, वह निश्छल प्यार व मित्रता अब तो बीते युग की बातें रह गयी !!

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  8. काकी को शायद सबसे अधिक दुःख परिवार ने ही दिया होगा ...

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  9. अब मनों में दीवारें उठ गई हैं तो घरों में तो होंगी ही । एक काकी आपको हर घर में नजर आयेगी ।

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  10. Ham Ganwo me Rahne WaLo ka jivan aaj bhi kuch aesa hi hai...

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