बुधवार, जून 19, 2013

- तेरी यादें –

 

सांझ के ढलते ही
मुझे पाकर तन्हा ,
सताने बेपन्हा
यूं दबे पांव ,
तेरी यादों का चले आना
तुम्ही कहो ये कोई बात है ?
 
बैठकर पहलू मे, मेरे
कांधे से लिपटकर, 
रातभर सिसक कर ,
देती हैं मुझे उलाहने पे उलाहना
तुम्ही कहो ये कोई बात है ?
 
अरुणोदय आँखों में, कुछ
ख्वाबों को छोड़कर,  
कुहासे को ओढ़कर 
तेरी यादों का चुपके से चले जाना
तुम्ही कहो ये कोई बात है ?


 


-विक्रम   

 

8 टिप्‍पणियां:

  1. असल बात तो यही है ...बहुत सुंदर रचना

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  2. बहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति आभार . यू.पी.की डबल ग्रुप बिजली आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN मर्द की हकीकत

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत खूब ... अगर उनकी यादें न हों तो नींद न आने पे साथ कौन देगा ...
    गहरा एहसास प्रेम का ...

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत भावपूर्ण और प्रेममयी अभिव्यक्ति...बहुत ख़ूबसूरत..

    जवाब देंहटाएं

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