सांझ के ढलते ही
मुझे पाकर तन्हा ,
सताने बेपन्हा
यूं दबे पांव ,
तेरी यादों का चले आना
तुम्ही कहो ये कोई बात है ?
बैठकर पहलू मे, मेरे
कांधे से लिपटकर,
रातभर सिसक कर ,
देती हैं मुझे उलाहने पे उलाहना
तुम्ही कहो ये कोई बात है ?
अरुणोदय आँखों में, कुछ
ख्वाबों को छोड़कर,
कुहासे को ओढ़कर
तेरी यादों का चुपके से चले जाना
तुम्ही कहो ये कोई बात है ?
मुझे पाकर तन्हा ,
सताने बेपन्हा
यूं दबे पांव ,
तेरी यादों का चले आना
तुम्ही कहो ये कोई बात है ?
कांधे से लिपटकर,
रातभर सिसक कर ,
देती हैं मुझे उलाहने पे उलाहना
तुम्ही कहो ये कोई बात है ?
ख्वाबों को छोड़कर,
कुहासे को ओढ़कर
तेरी यादों का चुपके से चले जाना
तुम्ही कहो ये कोई बात है ?
Waaaaaaaaahh bahut umda
जवाब देंहटाएंअसल बात तो यही है ...बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति आभार . यू.पी.की डबल ग्रुप बिजली आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN मर्द की हकीकत
जवाब देंहटाएंBahut sunder prastuti.....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... अगर उनकी यादें न हों तो नींद न आने पे साथ कौन देगा ...
जवाब देंहटाएंगहरा एहसास प्रेम का ...
वाह...भावपूर्ण.....उम्दा... बहुत-बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएं@मानवता अब तार-तार है
बहुत भावपूर्ण और प्रेममयी अभिव्यक्ति...बहुत ख़ूबसूरत..
जवाब देंहटाएंnice lines.
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