शनिवार, जून 13, 2015

एक भीगा लम्हा

बारिश में भीगा
एक लम्हा, आकर पास मेरे,
अचानक लगा मचलने,
ऐसे ले गया मुझे खींचकर...,
खिलौने लेने की जिद्द पर
कोई बच्चा ले जाता है जैसे,
फिर वो लगा दिखाने मुझे
तुम्हारा वो पुराना घर...
सामने वाले मकान की
वो उजाड़ सी छत….
पीछे का वो सरकारी पार्क,
जहाँ तुम अक्सर,
घूमने के बहाने,सहेली के साथ,
चली आती थी मुझसे मिलने ।
पिछली गली में ,
मास्टर जी का वो आखरी मकान,
जहां पहली बार मिले थे हम ।
फिर लगा वो दौड़ाने मुझे,
स्कूल आने जाने की उस
पगडंडी पर जो अब
लुप्तप्राय-सी है , वहाँ अब एक
सड़क पड़ी है ,
जो रोज वाहनों से
अपना बदन छिलवाती है।
कोई और किराएदार आ गया है,
तुम्हारे घर के सामने वाले
उस मकान के कमरे मे,
जहाँ उन दिनों मे रहता था ।
उस खिड़की पर अब मच्छरों के लिए
किसी ने जालियाँ लगा दी है ।
अब कुछ नज़र नहीं आता ,
इसलिए शायद
देख नहीं पा रहे हम
एक दूसरे को.... बीते कई सालों से .....


"विक्रम"

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