रविवार, जून 29, 2014

मेरी तन्हाइयां

मुद्दतों पहले
तुम्हारा आना,
और ,
लम्हे भर मे
चले जाना ,
बिखेर कर
यादों के
ढेर से
महीन टुकड़े
मेरी तन्हाइयों में,
जो अक्सर
नश्तर से
चुभते हैं,


मौसम के साथ
वो टुकड़े
बदलते रहते हैं
आकार अपना ,
और
बढाते रहते हैं
दर्द की
इन्तेहाओं को ,
और जब,
वो दर्द
लांघता हैं
हदों की हदें
तब कहीं जाकर
मिलता है
सुकून मेरी
तन्हाइयों को ।



“विक्रम”



रविवार, जून 15, 2014

मुनिया

( सत्य घटना पे आधारित । पात्रों के नाम बदल दिये गए हैं )


(चित्र गूगल से साभार ).
कुम्हारों के मुहल्ले मे हाहाकार मचा हुआ था। पूरे कुम्हार जाति  के लोग अपने अपने घर की छतों पे खड़े होकर तमाशा देख रहे थे । आज मासूम मुनिया के ससुराल वाले उसको लेने आए थे , मगर मुनिया और उसके घरवाले इसके लिए राजी नहीं थे ,क्योंकि मुनिया के  साथ उसकी ससुराल मे पशुओं जैसा व्यवहार किया जाता था । उसे मारा पीटा जाता था और पूरे दिन घर के कामों मे लगाए रखते थे। एक दिन मौका पाकर  वो ससुराल से भागकर अपने मायके आ गई।  उसके बाद उसके ससुराल से काफी बार उसका पति और ससुर उसे लिवाने आए मगर मुनिया ने जाने से माना कर दिया । बहुत बार पंचायत भी हुई मगर कोई नतीजा नहीं  निकला। आज अचानक उसके ससुराल के करीब 50 आदमियों ने उसके घर पे धावा बोल दिया , उसके माँ-बाप को बुरी तरह से मारा। उसका छोटा भाई डर के मारे पड़ोस के घरों मे जाकर छुप गया था।

 
जब गाँव के एक ठाकुर युवक सजन सिंह को घटना का पता चला तो अकेला ही उनसे लड़ने निकल पड़ा। पास के घरों की छतों से मुनिया की ससुराल वालों पर पत्थर बरसाने शुरू किए। जिस से घबराकर उन्होने मुनिया के माँ बाप को मारना छोड़ दिया मगर मासूम मुनिया को बालों से घसीट कर बाहर गली मे ले आए।   इसके बाद उन्होने अपने साथ लाए ऊंटों में से एक ऊंट पर मुनिया को पेट के बल बोरे की तरह बांध दिया। तभी सजन सिंह छत से कूदकर हाथ मे लाठी लिए उनके आगे खड़े हो गये ।सामने पचास आदमी थे और सजन सिंह अकेले , मगर वो गाँव की बेटी के साथ ऐसा अन्याय नहीं देख सकते थे। उन्होने कहा ,' जबर्दस्ती तो लड़की को नहीं ले जाने दूंगा और इस हालत में बांधकर तो हरगिज भी नहीं ले जाने दूंगा।  हमारे गाँव की लड़की आपको ब्याही है मगर इसे इज्जत के साथ लेकर जाओ। बहुत देर गरमा-गरमी के बाद  उन्होने लड़की को खोल दिया और उसको बैठाकर ले गए।

 
सजन सिंह जानते थे की वो लोग लड़की को वहाँ लेजाकर बहुत बुरी हालत मे रखेंगे, इसलिए एक दिन छुपकर वो चुपके से उसकी ससुराल पहुँच गए। मुनिया की ससुराल वाले खेत मे घर बनाकर रहते थे । सजन सिंह की एक जान पहचान का मुनिया की ससुराल में मिल गया जिसके माध्यम से मुनिया तक समाचार पहुंचाए गए। मुनिया बहुत दुखी थी।  एक दिन योजना के तहत सजन सिंह मुनिया को रात मे चुपके से अपने साथ ले गाँव ने आए और उसके माता पिता को सौप दिया। उसके बाद कुछ दिनों तक मुनिया को रिस्तेदारों के यहाँ छुपा कर रखा गया । उसके बाद एक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद मुनिया का तलाक करवा दिया। आज उस घटना को चालीस साल बीत चुके हैं।  मुनिया ने दुबारा शादी नहीं की। ठाकुर सजन सिंह आज इस दुनिया मे नहीं हैं मगर मुनिया आज भी उनके उस उपकार को भूली नहीं है । मुनिया अपना जीवन अपने बूढ़े माँ-बाप और भाई के परिवार के साथ बड़े मजे से गुजर-बसर कर रही है । गाँव के सभी लोग उसे अपनी बेटी की तरह मानते हैं। घर के अन्य कामों में अपना हाथ बंटाकर मुनिया ने अपने आप को व्यस्त रखा। उसने सिलाई मशीन को अपनी जीविका का माध्यम बनाकर कभी अपने आप को किसी पर  बोझ नहीं बनने दिया।

 
मुनिया और उसके परिवार वाले आज भी अक्सर सजन सिंह को याद करके भावुक हो जाते हैं। हालांकि कुछ कुम्हार जाति के लोग मुनिया को वापिस उसकी ससुराल भेजने के हक़ मे थे , लेकिन सजन सिंह ने मुनिया की इच्छा जाननी चाही तो मुनिया ने कह दिया की में नहीं जाऊँगी। उसके बाद सजन सिंह ने सालभर बहुत परेशानी के बाद उस लड़की को उन  जुल्मों से मुक्ति दिलाई जो उसे पूरी उम्र मिलने वाले थे।

 

“विक्रम”

नुकीले शब्द

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