मुद्दतों पहले
तुम्हारा आना,
और ,
लम्हे भर मे
चले जाना ,
बिखेर कर
यादों के
ढेर से
महीन टुकड़े
मेरी तन्हाइयों में,
जो अक्सर
नश्तर से
चुभते हैं,
मौसम के साथ
वो टुकड़े
बदलते रहते हैं
आकार अपना ,
और
बढाते रहते हैं
दर्द की
इन्तेहाओं को ,
और जब,
वो दर्द
लांघता हैं
हदों की हदें
तब कहीं जाकर
मिलता है
सुकून मेरी
तन्हाइयों को ।
“विक्रम”
वाह !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... तन्हाई में यादों का ही सहारा होता है ...
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