वक़्त की मोटी परतों
को उठाकर देखना !
मासूम ख्वाबों की लाशों पे ,
तुम्हें…चीखते जज़्बात मिलेंगे,
फफक कर सुबकती
अधपकी मुलाकातें मिलेंगी,
वक़्त का कफ़न भी
कुछ तार तार मिलेगा ,
अस्थिपंजर बन चुकी
पुरानी यादें भी मिलेंगी,
फफूंद लगे दिन और
बूढ़ी शामें भी मिलेंगी,
कब्र मे लेटी रातों के साथ
मरे हुये अबोध सपने भी मिलेंगे,
सलवटों भरे ताल्लुकात और
सूखे अल्फ़ाज़ भी मिलेंगे
“विक्रम”
वक्त की परतें अपने आप ही समय की धुल उड़ा देती है ... खुद उठाने की जरूरत कहाँ पड़ती है ...
जवाब देंहटाएंगहरी टीस लिए रचना ...