- फ्रीडम ऑफ स्पीच
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अभी पिछले रविवार की सुबह की घटना है । दूर किसी दूसरी कॉलोनी
से कुछ कुत्तों के भोंकने की आवाज सुनकर हमारे
सामने रहने वाले शर्मा जी का कुत्ता भी
ज़ोर ज़ोर से भोकने लगा। छुट्टी के दिन मेरे जैसे देर तक सोने वालों को उसका भोंकना रणदीप
सुरजेवाला के वक्तव्य सा लग रहा था। नींद में खलल की वजह से रज़ाई में मुंह ढककर फिर से सोने की कोशिश की । तभी अचानक एक ज़ोर
से लट्ठ बजने की आवाज आई और साथ ही कुत्ते के ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने की आवाज आने लगी
। फिर धीरे धीरे कुत्ते के चीखते की आवाज कम होती जा रही थी शायद कुत्ता दूर जा रहा
था ,उसकी चिल्लपों की आवाज
आनी बंद ही चुकी थी। लेकिन फिर गली में ज़ोर ज़ोर से लोगों के बोलने की आवाज आने
लगी।
नींद काफ़ुर हो चुकी थी। गेस्ट हाउस की बॉलकोनी से झककर देखा
तो सामने वाले शर्मा जी ओर हमारे बगल में रहने वाले दिल्ली पुलिस के हवलदार यादव जी
झगड़ रहे थे । ऊपर से देखने में मजा नहीं आया तो मुंह धोकर हाथ में चाय का कप लेकर नीचे
धूप में चबूतरे पर बैठकर चाय की चुसकियों के बीच लाइव देखने लगा ।
लड़ाई अब चर्म पर पहुँच रही थी , हालांकि पड़ोसी होने
का फर्ज निभाते हुये मैंने थोड़ी जल्दी में चाय खतम करके बीच-बचाव के इरादे से पास चला
गया। हवलदार यादव जी अक्सर शनिवार शाम 8PM के लगभग हमारे गेस्ट
हाउस में नींबू पानी पीने आते रहते हैं, वो नींबू पानी के काफी
शौकीन है अगर कोई पिलाये तो । और शर्मा जी से भी आते जाते हाय-हैलो (राम-राम) होती रहती है वो पंडित होकर संस्कृत की जगह अँग्रेजी
के शब्दों पर ज्यादा ज़ोर देते थे।
तभी बेचारे शर्मा जी , जो की छ: फिट लंबे हवलदार से काफी डर चुके थे
, मुझे देख थोड़े एनर्जेटिक होकर ज़ोर से बोले ,’अब आप ही बताइये राजपूत जी , भला जानवर बेचारा भोंक भी
नहीं सकता ? भई ‘फ्रीडम ऑफ स्पीच’ तो सभी को है। मेरा मतलब “बोलने की आजादी”, यादवजी की तरफ देखकर उसका हिन्दी रूपांतर किया ताकि हवलदार
समझ सके।
“तो फिर शांति बनाए रखने की ज़िम्मेदारी हमारी है”, हवलदार ने लट्ठ सड़क
पर पटक कर दो कदम आगे आते हुये कहा।
मैंने हवलदार को धीरे पीछे करते हुये कहा ,’ अरे यादव जी क्यों
सुबह सुबह झगड़ा कर हो ? आखिर किस बात को लेकर ये बहस कर रहे हो ? मैंने न्यूज
चैनल होस्ट की तरह अपनी ज़िम्मेदारी निभाते हुये कहा ? “
तभी शर्मा जी बीच में बोल पड़े । “हवलदार ने मेरे कुत्ते को इतने
ज़ोर से लट्ठ मारा की बेचारा मोहल्ला छोड़कर ना जाने कहाँ भाग गया? “
“तो उसे चुप क्यों नहीं करवाते ? सुबह सुबह सबकी नींद
खराब करता है भोंक-भोंक कर”, यादव जी ने जनरल बक्शी की तरह तैश
में आकर आँखें निकलते हुये कहा ।
“सबको बोलने की आजादी है , आप किसी के मुंह पर हाथ नहीं रख सकते”, मुझे बीच में खड़ा देखकर शर्माजी भी मौलाना अंसार रज़ा की तरह तर्जनी हिलाते हुये बोले ।
“हाथ ना सही , लट्ठ तो रख सकते हैं”, यादव ने ठेठ अपनी पुलिसिया सभ्यता का परिचय दिया । “बोलने की
आजादी है ,भोंकने की नहीं “, यादव जी ने
शर्माजी की तरफ आँखें निकालते हुये बात पूरी की ।
जैसे तैसे दोनों को शांत करवाकर अपने अपने घर भेजा। कुछ देर
बार देखा तो शर्मा जी अपने कुत्ते को खोजते हुये जेएनयू की तरफ जा रहे थे ।
"विक्रम"
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