बुधवार, नवंबर 20, 2019

अतीत

बहुत अरसा हुआ ,

उन लम्हों को

अतीत की  

गहरी खाई में दबाये हुये

अक्सर मौसमानुसार

निकल आते हैं अंकुर और ,

फैल जाती हैं बेलें यथार्थ

की दीवारें फांद, वजूद के गिर्द

ओर फिर स्मृतियों की

अभिवृत्ति देकर

खींच लेती हैं मुझे भी

उन गहरी खाईयों में.....


"विक्रम"


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