बुधवार, जनवरी 23, 2013

योजना


प्राचीन समय मे एक राज्य हुआ करता था जिसके राजा का चुनाव वहाँ की जनता क्रमबद्ध तरीके से करती थी, यानी आज इस परिवार का सदस्य राजा बनेगा तो कल उसके पास वाले दूसरे परिवार का सदस्य। पाँच साल तक राजा बने व्यक्ति की खूब सेवा की जाती उसे हर सुख दिया जाता। महल के सभी दास दासियाँ उसके आगे पीछे घूमते रहते। महल की सभी रानियों पे उसका अधिकार होता था। राज्य की जनता उसे खूब सम्मान देती। राजा जो भी कहता उसकी आज्ञा का पालन किया जाता। मगर शर्त ये होती की पाँच साल के बाद उसे राज्य की सीमाओं के उस उस पार बहती नदी के दूसरी तरफ वाले जंगल मे छोड़ देते जहां या तो वो खुद भूख प्यास से मर जाता नहीं तो उसे कोई जंगली जानवर खा जाता।

...“अरे ! तूँ पागल हो गया है क्या ? अब तूँ हमारे जैसा साधारण इंसान है और आज का दिन सायद तुम्हारा आखिरी दिन है। हम तुम्हें नदी के उस पार के घने जंगल मे छोड़ देंगे जहां तुम्हें कोई जंगली जानवर खा जाएगा। “।  
जब भी पाँच साल पूरे होते यही प्रथा दोहराई जाती। जनता मे एक तरह का उत्सव मनाया जाता। बैंड बाजे और पूरी धूम धाम से राजा को विदा किया जाता। विदा होने वाला राजा मौत की सजा मिले कैदी सा आगे आगे चल पड़ता। और फिर उसी दिन कोई दूसरा साधारण आदमी राजा चुना जाता और उसे राजमहल पहुंचा दिया जाता। जब भी कोई व्यक्ति राजा चुना जाता वो बहुत उदास हो जाता,क्योंकि उसे पता होता था की अब उसकी ज़िंदगी सिर्फ पाँच साल और बची है।
 

ऐसे ही एक विदाई समारोह मे राजा को विदाई दी जा रही थी और राजा बहुत खुश नजर आ रहा था और हँसे जा रहा था। लोग सोचने लगे की आखिर राजा खुश क्यों है? कुछ ने कहा की मौत के डर से  राजा पागल हो गया है और तभी ऐसी हरकत कर रहा है। जब उसे राज्य की सीमा पर बहती नदी के उस पार के जंगलों मे छोड़ने के लिए नौका मे बैठाया गया तो वो और ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा। नौका चला रहे मल्लाहो ने उसे डांटते हुये कहा की “अरे ! तूँ पागल हो गया है क्या ? अब तूँ हमारे जैसा साधारण इंसान है और आज का दिन सायद तुम्हारा आखिरी दिन है। हम तुम्हें नदी के उस पार के घने जंगल मे छोड़ देंगे जहां तुम्हें कोई जंगली जानवर खा जाएगा। “
 

राजा से आम इंसान बने व्यक्ति ने मुस्करा कर कहा , “अरे मूर्खो, में अब भी राजा हूँ, और अब अपने नए राज्य मे जा रहा हूँ। मैंने अपने पहले साल के कार्यकाल मे नदी के उस पार के जंगल के सभी हिसक जानवर मरवा दिये थे। कार्यकाल के दूसरे साल वहाँ के जंगल साफ करवा दिये तथा दूसरे साल वहाँ मकान बनवा दिये। तीसरे साल वहाँ सड़के और खेती के लिए उपजाऊ जमीन तैयार कारवाई थी। चौथे और पांचवे साल वहाँ जंगली कबीले के लोगों को लाकर बसाया और उनके लिए हर सुख सुविधा मुहैया कारवाई। अब में वहाँ का राजा हूँ और वो सब मेरी प्रजा है जो मेरे आने का इंतजार कर रही है ।

- विक्रम

8 टिप्‍पणियां:

  1. राज बनने पर पहले अपना भला - दुनिया जाये भाड़ में

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  2. बहुत सुन्दर ...यही तो है दिमाग का खेल

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  3. बहुत खूब...आजकल यही तो हो रहा है...

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  4. ये राजा भी किसी ताऊ से कम ना था !! आखिर ताऊगिरी दिखा ही दी !! और इसी तरह की ताऊगिरी हमारे मंत्री करते है क्या पता आगे कभी मंत्री बनने का मौका मिले ना मिले इसलिए बड़े से बड़ा घोटाला करो और स्विस बैंक भरलो !!

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  5. बढ़िया और लाजवाब।
    कृपया मेरी नई पोस्ट "चीन की महान दीवार" को भी अवश्य देखें। धन्यवाद।
    ब्लॉग पता :- gyaan-sansaar.blogspot.com

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  6. इसी राजा से सीख रहे हैं आजकल के नेता ...
    सामयिक कहानी ...

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