आइन्सटाइन ने कहा था की तीसरे युद्ध का तो पता नहीं मगर चौथा पथरों से लड़ा जायेगा.लेकिन आजकल तीसरे युद्ध की शुगबुगाहट शुरू हो गई है.इस युद्ध में किसी अस्त्र शस्त्र की जरुरत नहीं और ना ही किसी परमाणु या ड्रोन की , ये तो चुपके चुपके लड़ा जा रहा है.
आमतौर पर हर युद्ध के पीछे कोई ना कोई कारण होता है , और ठीक उसी तरह इसके पीछे भी कई कारण है. आज भाषा , राज्य ,धर्म और धार्मिक ग्रंथो के नाम पे लड़ा जाने वाला ये है ब्लोगिंग वार. अगर आपकी भाषा सामने वाले से मिलती नहीं तो आप उसके ऊपर कमेन्ट करते हो ,आपका राज्य ,धर्म सामने वाले से अलग है तो आप उसपे टिक्का टिप्पणी करते हो , सामने वाले के ग्रंथों में कही गई बातों को ब्लॉग में उठाकर बहस खड़ी करते हो.
मैने कुछ ब्लॉग में पोस्ट पढ़ी तो पाया की ब्लॉगर ने इतना गहन शोध अपने मजहब की पुस्तकों को पढनें में नहीं किया होगा जितना दुसरे मजहब की पुस्तकों में, और वो भी सिर्फ इसलिए , की कुछ मसाला मिले जिसे अपने ब्लॉग में लगा सके . दुसरे के धार्मिक ग्रंथों से अच्छी बातें उठाने की जगह कुछ भर्मित तथ्य उछाल कर हंगामा खड़ा करने वाले कोनसे युद्ध की तैयारी में लगे हैं भगवान जाने .
कमोबेश धार्मिक ग्रंथों में कुछ ना कुछ ऐसा जरुर है जो आज सभी को हजम नहीं होता ,कुछ इसको धार्मिक ग्रंथों से की गई छेड़-छाड़ बतातें हैं , कुछ इसको अपने तर्कों से सही ठहराता है .आज एक ब्लॉगर की एक सवेंदनशील टिप्पणी ,हजारों लोगों में शब्दों की खामोश बहस खड़ी कर देती हैं . निकट भविष्य में येही ख़ामोशी तूफान से पहले की ख़ामोशी सिद्ध होगी . फिर आखिर लोग इस तरह के वक्तव्य देकर कोनसी मंजिल पा लेना चाहते हैं.? क्या प्रसिद्धी के लिए इंसानों को गुमराह किया जा रहा है. ? क्या गुमराह होने वाले लोगों की अपनी कोई राय या सोच नहीं क्या उनके पास अपना दिमाग नहीं.? क्यों लोग ऐसे समाज कंटकों की किसी भी बात को सच मान भ्रमित हो जाते हैं.? किया उन्हें अपने धार्मिक में कहीं बातों पे विश्वास नहीं. ? अगर ऐसा है तो क्यों नहीं "इंसानियत धर्म" को अपनाया जाये , जिसमे आपसी भाईचारे से नकारात्मक सोचों को धोया जाये.?
अपने धर्मं को ऊँचा और दुसरे के धर्म को नीचा बताने वालों पहले जरा खुद तो इस ऊँच-नीच से बाहर निकलों ताकि अपने वजूद से रूबरू हो सको .बस एक बार दुसरे के मजहब की इज्जत कर, और फिर देख ,वो तुझे और तेरे धर्म को कितनी इज्जत बक्सता है.
"विक्रम"
सार्थक आलेख..
जवाब देंहटाएंऐसा घृणित और कुत्सित काम एक ही ब्लागर ज्यादा करता है जो पेट्रो डालर से फंडिंग लेता है..
जवाब देंहटाएंवो सिर्फ सस्ते प्रचार में बने रहने के लिए ये करता है..
ऐसा घृणित और कुत्सित काम एक ही ब्लागर ज्यादा करता है जो पेट्रो डालर से फंडिंग लेता है..
जवाब देंहटाएंवो सिर्फ सस्ते प्रचार में बने रहने के लिए ये करता है..
सार्थक व सटीक लेखन के लिए आभार ।
जवाब देंहटाएंSome people have nothing better to do , so they keep themselves engaged in such activities...
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने। हम दूसरों के साथ वह व्यवहार न करें जो हमें अपने लिए पसंद नहीं हो।
जवाब देंहटाएंवो तो है सही
जवाब देंहटाएंअपने घर की समस्या
जब नहीं सुलझा पाओ
दूसरे के घर में
घुस जाओ ।
वो तो है सही
जवाब देंहटाएंअपने घर की समस्या
जब नहीं सुलझा पाओ
दूसरे के घर में
घुस जाओ ।
आपका पोस्ट पर आना बहुत ही अच्छा लगा मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंआपकी बातें विचारणीय हैं..... एक सार्थक आलेख
जवाब देंहटाएंsarthak vichardhara ..........sunder prastuti .
जवाब देंहटाएंsaarthak aalekh...
जवाब देंहटाएंबहुत सारगर्भित और विचारणीय आलेख..
जवाब देंहटाएंसही कहा। दूसरों के घर में पत्थर फेंकने से पहले अपने घर की कांच की दीवारों पर ध्यान देने में ही समझदारी है।
जवाब देंहटाएंबहुत सारगर्भित और विचारणीय
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