अधबुने शब्दों की
तुम्हारी मौन स्वीकृतियाँ,
दर्ज़ हैं ,
ज़हन की
गहन स्मृतियों में...
मैं अक्सर,
अन्तर्मन के विद्रोह
में उलझा रहा,
और जूझता रहा
विकल्पों की भ्रांतियों में....
कालकल्पित ख्वाबों के
जीर्ण शीर्ण आधार ,
जीर्ण शीर्ण आधार ,
बहुत पीछे छोड़ दिये
वक़्त की स्फूर्तियों ने....
“विक्रम”
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएं