घर की चौखट पे
दोनों हाथ टिकाये 
वो आज भी उस गली के
दूसरे छोर तक नज़रों 
को बिछाये बैठी है ,
जिस गली से गुजरकर
मुद्दतों पहले कोई 
चला गया...... 
शामों को अक्सर 
हल्के अंधरे में ,
गली से गुजरता हर 
साया उसे 
जाना-पहचाना सा 
नज़र आता ,
मगर  पास आने पर....
उसकी नजरें फिर से 
गली के आख़िरी छोर 
पर लौट जाती ,
फिर से
किसी भूले को घर 
वापिस लाने  ......   
 "विक्रम"

 
धारा प्रवाह लेखन - बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह - मार्मिक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत खूब |
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