ब्लॉग का नाम मैने अपने गाँव (गुगलवा-किरताण ) के नाम पे रखा है ,जो सरकार की मेहरबानी से काफी पिछड़ा हुआ गाँव हैं |आज़ादी के इतने बरसों बाद भी बिजली,पानी ,डाकघर , अस्पताल जैसी सुविधाएँ भी पूर्णरूप से मय्यसर नहीं हैं. गाँव के सुख दुःख को इधर से उधर ले जाता हूँ , ताकि नेता को दया आ जाये | वैसे नेता लोगों से उम्मीद कम ही है इसलिए मैने अपने गाँव (Guglwa) का नाम Google से मिलत जुलता रखा है , ताकि Google की किस्मत की तरह Googlwa की किस्मत भी चमक जाये
शनिवार, अगस्त 10, 2013
8 टिप्पणियां:
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नुकीले शब्द
कम्युनल-सेकुलर, सहिष्णुता-असहिष्णुता जैसे शब्द बार बार इस्तेमाल से घिस-घिसकर नुकीले ओर पैने हो गए हैं , उन्हे शब्दकोशों से खींचकर किसी...
तनहाई में अक्सर यादों के पन्ने पलटने का मन करता है । छोटीसी रचना में बड़ी बात कह डाली ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर उम्दा पोस्ट ,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : जिन्दगी.
Waah...Bahut Umda....
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन...
जवाब देंहटाएंवाह ! शानदार !!
जवाब देंहटाएंयादों की स्याही कुछ उके देती है अतीत से और बुनने लगती है नई कहानी फिर से ...
जवाब देंहटाएंभावमय ...
यादों की स्याही कुछ उके देती है अतीत से और बुनने लगती है नई कहानी फिर से ...
जवाब देंहटाएंभावमय ...
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...
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