सोमवार, सितंबर 26, 2011

टांग खींचना एक कला







टांग खींचना आजकल उच्च दर्जे की कलाओं में शुमार किया जाता है ये वो संपदा है जो कुछ नसीब के धनी लोगों को विरासत में और कुछ ने अपनी मेहनत से अर्जित की है आने वाले दिनों में इसको जीविका के मुख्य उद्गम के तौर पे देखा जा रहा है एक वक़्त था जब चमचागिरी का बोलबाला था तथा चमचा लोगों का यत्र तत्र सर्वत्र बोलबाला था


आजकल भी येदा कदा नजर आ जातें हैं मगर गुणवत्ता में वो पहले वाला निखरापन नहीं है मगर इसका मतलब ये कतई नहीं है की चमचों का अस्तित्व ही ख़त्म हो गया वो आज भी हमेशा की तरह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं , मगर इस बार उनका मुकाबला "टांग खिंचाऊं" संगठन से है जो अपने इस हुनर की बदोलत तेजी से फलफुल रहा है निकट भविष्य में टांग खींचने की इस कला पर काफी शोध होने है , और MBA जैसे संस्थान भी अपने अध्ययन में इस कला को इज्जत से नवाजेगें इस कला में अभी निपुण लोगों का आभाव है

मगर कोशिश जारी है, और जल्द ही इस विषय में पी.एच.डी की हुई पहली खेप बाजार में आएगी प्राचीन काल मे भी इसके सबूत मिलते हैं उस वक़्त ये कला अपने शैशव काल में थी और अलग अलग रूपों में विधमान थी मगर आज ये जवानी की दहलीज पे कदम रख चुकी है और अपने पुरे शबाब में हैं इसके अनुयायी प्राय: दो श्रेणियों विभाजित किये जाते हैं पहले नौसिखिये दर्जे के जो इस कला की ABCD सीख रहे हैं

दुसरे जो इस कला में पारंगत हैं नौसिखिये ज्ञानाभाव के चलते अक्सर बचकानी हरकत करते रहते हैं , उनकी हालत ऐसी होती है जैसे "बंदर के हाथ में आइना" ऐसे लोग टांग खींचने के साथ साथ सामने वाला का हाथ ,गर्दन ,बाल सबकुछ खींचने लगते हैं ,जिसके चलते कोई इनकी सेवा लेना उचित नहीं समझता दूसरी श्रेणी में पारंगत अनुयायी आते हैं जो सही मायनो में इस कला के सच्चे
पारखी है

इनकी सेवा लेने में बड़े बड़े उद्योगपति और राजनीतिज्ञ खासी दिलचस्पी लेते हैं,इसीलिए ये अमूमन मशरूफ ही रहते हैं इसका मुख्य कारण है कि जब अनुभवी लोग टांग खींचते हैं तो अपने पुरे तजुर्बे का इस्तेमाल करते हैं और उस वक़्त सामने वाले को पता ही नहीं चलता कि उनके निचे से टांगे निकाल दी गई हैं , और जब आभास होता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है

"विक्रम"

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