पिता ,
अपनी जड़ों को
जमीन के सिने में
पेवस्त कर बनाता है घरोंदा ,
ताकि ,
बचा रहे आँधियों से और ,
सुरक्षित रहे ज़माने की
बुरी नजर से
और....
अपनी जड़ों को
जमीन के सिने में
पेवस्त कर बनाता है घरोंदा ,
ताकि ,
बचा रहे आँधियों से और ,
सुरक्षित रहे ज़माने की
बुरी नजर से
और....
जूझता है ताउम्र ,
जीवन के उतार चढ़ाव से,
मां संग घर के रखरखाव में,
और.... ,
लड़ता है ताउम्र,
करता है खबरदार ! वो मेरे बच्चे हैं ,
दुनिया के बच्चों से बहुत अच्छे हैं ,
और..... ,
सर पर हाथ घुमाकर ...
बताता है जीने के उपाय
पलट पलटकर ,
अपने अनुभव की किताबें ,
जो खरीदी थी कुछ खट्टे मिट्ठे
अनुभवों के बदले ,
जिन्दगी से
बताता है जीने के उपाय
पलट पलटकर ,
अपने अनुभव की किताबें ,
जो खरीदी थी कुछ खट्टे मिट्ठे
अनुभवों के बदले ,
जिन्दगी से
कहता है ताउम्र,
सुनो बेटे ! ये दुनिया बड़ी बेरहम है ,
कल तुम अकेले हो ,आज भर को हम है,
और....
फिर.. ,
पास बैठाकर , सर पर हाथ घुमाकर ...
बताता है जीने के उपाय ,
पलट पलटकर ,
अपने अनुभव की किताबें ,
जो खरीदी थी कुछ खट्टे मिट्ठे
अनुभवों के बदले , जिन्दगी से .
"विक्रम"
bahut badiya likhi h aapne
जवाब देंहटाएंsir ji
kabhi aap mere blog par bhi padhariye
http://rohitasghorela.blogspot.com
bahut sundar rachana ...abhar.
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