सोमवार, नवंबर 21, 2011

वक़्त के अंधड़

नसीहत से सरोबर आवाज ,
पूर्वजों की...,
अकसर आती है..., जो ,
चोकस खड़े है,
आज भी.
उन वीरान खंडहरों के चहुँ और..,
....जिनको सींचा था ,
शाका और जौहरकी ज्वाला से..,
और बचाकर रखा था,
...ताकि सौंप सकें
भविष्य के हाथों में ...
और बचा रहे अस्तित्व ,
मगर आज .....?
लुप्त हो रहा है अस्तित्व ,
इन आँधियों में ,
सुनो ! ,

फिर एक रोबदार आवाज ,
....उन महलों से ,
आदेशात्मक सरगरोशी.... ,
जो कभी ,
सिहरन भर देती थी ,
दुश्मन के सीने में... ,
कहा ,
सुनो !
एक और शाका ...!
हाँ..... !
...करना पड़ेगा तुम्हे ... ,
ताकि.... ,
सनद रहे,
की तुम,
आम नहीं ,
खास हो ...,
निभा दो वो प्रथा..!
जो पहचान है हमारी ,
वरना....
खास से आम कर देंगे तुम्हे
ये वक़्त की अंधड़..!
"विक्रम"

9 टिप्‍पणियां:






  1. प्रिय बंधुवर विक्रम शेखावत जी
    सस्नेहाभिवादन !


    सुनो !
    एक और शाका…!
    हां…!
    करना पड़ेगा तुम्हे …
    ताकि ,
    सनद रहे
    की तुम
    आम नहीं
    खास हो … !

    आपकी रचना भी ख़ास है … बहुत सुंदर और प्रभावशाली प्रस्तुति !


    बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    जवाब देंहटाएं
  2. विक्रम जी,
    खूबसूरत रचना,नए अंदाज में लिखी प्रभावशाली सुंदर पोस्ट,...
    इसी तरह से लिखते रहें,मेरी शुभकामनाएँ बधाई..
    मेरे नए पोस्ट में स्वागत है,..
    http://dheerendra11.blogspot.com
    मेरा मुख्य ब्लॉग'काव्यांजली'है

    जवाब देंहटाएं
  3. bhut acha laga mujhe.........



    Rajput ji aapka comment pad kar mujhe or jyaada likne ki takt mili h eeske liye "THANK YOU"
    yu hi margdarshan karvate rhiye ga...

    please join my blog
    http://rohitasghorela.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  4. जो जाति समाज और धरम आपने इतिहास को भूल जाते है उसका सर्वनाश निश्चित है
    बहुत अच्छी कविता है आपकी ..........

    जवाब देंहटाएं
  5. अतीत और वर्तमान का सुन्दर समावेश किया है

    जवाब देंहटाएं

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