शुक्रवार, अक्तूबर 19, 2012

सर्द सुबह की धुंध


सर्द सुबह की धुंध 
में भीगकर 
तुम चली आओ ..
इस तरफ के मौसम
अपनी तपस से 
झुलसाने लगे हैं 
उन हसीन ख्वाबों को 
और लगे हैं कुम्हलाने 
तुम्हारी यादों के 
मखमली अहसास..
अपने बदन से 
लिपटी इन मनचली
ओस की बुंदों को 
झटककर गिरा दो 
उन झुलसते लम्हों पर  
जो तन्हाईयों के बोझ
तले टूटने लगे हैं.. फिर 
समेट अपनी बाहों में 
पहुंचा दो शीतलता 
के चरमोत्कर्ष पर.. 
ठिठुरने ना देना 
 अपनी गरम 
साँसों से....मुझे

"विक्रम"

7 टिप्‍पणियां:

  1. इस जिस विरह वियोग को जिस तरह आपने शब्दों में बांधा हैं वो बहुत ही लाजवाब और उम्दा हैं।
    बहुत सुन्दर रचना ..

    बधाई स्वीकारें।
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत हैं
    http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/10/blog-post_17.html

    जवाब देंहटाएं
  2. सर्द सुबह की गुनगुनी धूप.......खुबसूरत अभिव्यक्ति..........

    जवाब देंहटाएं

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