भाभी
जब घर मैं ब्याहकर आई थी उस वक्त मै करीब 4,5 साल का रहा होऊंगा। बड़े भाई आर्मी में थे, इसलिए भाभी
अधिकतर समय हम लोगों के साथ परिवार में ही रही । दो-चार बार भाभी, भाई के साथ भी गई तो उस वक़्त मैं भी उनके साथ रहता था। भाभी के पहले 2 बच्चे
जन्म के कुछ महीनों बाद ही चल बसे थे इसलिए उनका मुझ में बच्चे सा स्नेह था।
मुझे आज
भी याद है उन दिनों मैं ,भाभी ओर भाई बिहार के “गया” शहर में
रहते थे उस वक्त मेरी उम्र 10,11 साल रही होगी। । मैंने भाभी
को कभी “भाभी” नहीं कहा , न जाने क्यों। वो मुझसे काफी बड़ी थी
ये संकोच था या ना जाने क्या कारण रहा होगा। एक दिन ऐसे ही खेलते खेलते दौरे मैंने
भाभी को “मम्मी” कह दिया तो वो बहुत भावुक हो गई , बोली एक बार
फिर बोलो। मेरे साथ खेलने वाले बच्चे जब अपनी घर में अपनी मम्मी को “मम्मी” पुकारते
थे तो उस दिन मैंने भी बोल दिया।
उन
दिनों का एक ओर किस्सा याद आता है । एक बार मैंने किसी बच्चे को पीट दिया था। वो शायद आर्मी के किसी ऑफिसर का रहा होगा। घर आया
तो भाई ने मुझे डांटा ओर थप्पड़ भी लगा दिया। मैने रोते हुये अपने आपको बाथरूम में बंद कर लिया ओर देर तक रोता
रहा ओर अंदर से ही रोते रोते भाई को कहता रहा की गाँव चलना माँ को बोलूँगा की मुझे
मारा। कुछ देर भाभी ने बाथरूम का दरवाजा बजाया ओर कहा की बाहर आ जाओ कोई नहीं मारेगा...
देखो तुम्हारे भाई भी रोने लगे हैं ..... मैं भाभी की आड़ लेकर बाहर आया तो देखा भाई
भी रो रहे थे। उस दिन भाई ने मुझे पहली ओर आखिरी बार डांटा था , उस दिन के बाद कभी नहीं।
चार
साल पहले भाभी हम लोगों को छोड़कर भगवान के पास चली गई। वो स्वभाव से बहुत हँसमुख थी
, जिस महिला सी उन्होने दो मिनिट बात कर ली तो
वो उनकी पक्की सहेली हो जाती थी। भाभी करीब सालभर से बीमार सी चल रही थी मगर उन्होने
कभी किसी को एहसास नहीं होने दिया की वो बीमार हैं। उनकी हालत दिन-ब-दिन खराब होती
रही ओर वो अस्पताल ना जाने के बहाने करती रही। दरअसल भाभी की नानी , माँ ओर भाभी की 3 छोटी बहनें देखते देखते ही क़ैसर की शिकार हो चुकी थी, तो शायद
भाभी को भी ऐसा ही कुछ डर लग रहा था की उनको भी क़ैसर है । मगर उनको क़ैसर नहीं था।
धीरे धीरे उनका शरीर इतना कमजोर हो चुका था की वो
पहचान में नहीं आ रही थी। एक बार व्हाट्सएप पर उनका फोटो देखा तो उनकी हालत का पता
चला । मैं उन दिनों बंगलोर में था , घर पर बोला की उनको जबर्दस्ती
अस्पताल लेकर जाओ। उसके बाद उनको अस्पताल लेकर गए जांच ए पता चला शुगर 400 को पार कर
चुका था शरीर के काफी Internal organ damage हो चुके थे । दिल्ली के आर्मी हॉस्पिटल में 3,4 महीनों
के इलाज के बाद अचानक वो अपने पीछे 3 बेटे 3 बहुएँ ओर 5,6 पौते-पोतीयां
है छोड़कर इस दुनियाँ से चल बसी। मौत के आखिरी दिनों में ना मैं उनके पास था ओर ना भाई
, क्योंकि भाई भी उन दिनों अपनी किडनी की बीमारी के लिए पुना
गए हुये थे ओर मैं 10,15 दिन उनको देखने छुट्टी आने वाला था।
“राह
देखा करेगा सदियो तक
छोड़
जाएंगे ये जहां तन्हा.....”
-विक्रम
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