मौसम की करवटों 
के दरमियाँ, तेरी यादों 
से विह्वल लम्हे  ,
आँखें मलते हुये 
जाग उठते हैं
चिर-निद्रा से। 
चुपके से मैं, 
कुछ भूले हुये से लम्हों 
को ,वक़्त की 
हथेली पर रखकर,
याद करने लगता हूँ 
उन लम्हों के जन्म 
के वो पल ,
जो अब असपष्ट से हैं
मेरे मानस पटल पर ।
कुछ खास लम्हे ,
मुझे देखते ही मुस्कराने 
लगते हैं , मै बेबस सा 
उनकी मासूम सी 
मुस्कराहटों के जवाब में 
मैं, बस मुस्करा देता हूँ 
दबाकर आंदोलन 
आँसूओं का   । 
“विक्रम”
