बहुत अरसा हुआ ,
उन लम्हों को
अतीत की
गहरी खाई में दबाये हुये
अक्सर मौसमानुसार
निकल आते हैं अंकुर और ,
फैल जाती हैं बेलें यथार्थ
की दीवारें फांद, वजूद के गिर्द
ओर फिर स्मृतियों की
अभिवृत्ति देकर
खींच लेती हैं मुझे भी
उन गहरी खाईयों में.....
"विक्रम"