बुधवार, जून 21, 2017

तक़सीम


वो बेनाम से रिश्तों के धागे
पूरी तरह से टूटे नहीं है,
अभी भी उलझे हैं 
मुझ में उनके कुछ तार,
मगर....,
वक़्त के पहिये
मे फँसकर,
अनवरत टूटते बंधनों को
सहेजने मे ,
मैं खुद टूट चुका हूँ ।
अपेक्षित है संचयन
उन धागों का तुमसे भी ,
तकसीम में ,
जिनके कुछ सिरे,
थे तुमसे भी लिपटे हुये ....

"विक्रम"

रविवार, जून 18, 2017

घर

भागते-दौड़ते....
अल सुबह भोर में ही,
लोगों के झुंड के झुंड ,
निकल पड़ते हैं सड़कों पे ,
और शाम के धुंधलके
से लेकर, देर रात तक,
लौटते रहते हैं उन घरों में,
जिनको,
बनाना तो आसान था
मगर ,

चलाना दुष्कर है.....

"विक्रम"

नुकीले शब्द

कम्युनल-सेकुलर,  सहिष्णुता-असहिष्णुता  जैसे शब्द बार बार इस्तेमाल से  घिस-घिसकर  नुकीले ओर पैने हो गए हैं ,  उन्हे शब्दकोशों से खींचकर  किसी...

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