रविवार, जून 18, 2017

घर

भागते-दौड़ते....
अल सुबह भोर में ही,
लोगों के झुंड के झुंड ,
निकल पड़ते हैं सड़कों पे ,
और शाम के धुंधलके
से लेकर, देर रात तक,
लौटते रहते हैं उन घरों में,
जिनको,
बनाना तो आसान था
मगर ,

चलाना दुष्कर है.....

"विक्रम"

1 टिप्पणी:

मार्गदर्शन और उत्साह के लिए टिप्पणी बॉक्स हाज़िर है | बिंदास लिखें|
आपका प्रोत्साहन ही आगे लिखने के लिए प्रेरित करेगा |

नुकीले शब्द

कम्युनल-सेकुलर,  सहिष्णुता-असहिष्णुता  जैसे शब्द बार बार इस्तेमाल से  घिस-घिसकर  नुकीले ओर पैने हो गए हैं ,  उन्हे शब्दकोशों से खींचकर  किसी...

Details