रोहित स्कूल से घर
आया तो अपनी माँ के पास 
काफी देर से एक खूबसूरत युवती को बैठे देखकर 
माँ उसके मनोभावों को भांपते हुये मुसकराकर बोली ,”तेरी दुल्हन ”
  
  
  
  
  
  
  
  
  वक़्त खिसकता
रहा......बीस साल पुरानी यादें उसके गाँव आते ही ताज़ा हो जाती। आज फिर रोहित करीब
दो साल बाद अपने गाँव आया। अपने घर की साफ सफाई करवाकर वो निखिल के घर की तरफ बढ़
गया। वो जब भी गाँव आता खाना निखिल के घर ही खाता था। काकी उसे निखिल की तरह प्यार
से खाना खिलाती ।   
  
  
  
  
  
  
  
  
  
नहीं ,मुझे अचानक जाना पड़ रहा है , आंटी को बोल देना ।
युवती रोहित के साथ साथ चलने लगी। ,“आपने मेरी मम्मी को देखा था ? कैसी दिखती थी वो ?”
  
- "विक्रम"
  
पूछा, “ये कौन है माँ ? “
माँ उसके मनोभावों को भांपते हुये मुसकराकर बोली ,”तेरी दुल्हन ”
रोहित शरमाकर दूसरे
कमरे मे चला गया ,युवती भी शरमाकर रोहित को जाते हुये देखने लगी।
शालिनी पड़ोस के घर मे
अगले हफ्ते होने वाली एक शादी मे शामिल होने आई थी। रोहित को जब पता चला तो वो
स्कूल से आते ही पड़ोस के घर मे अपने दोस्त निखिल के पास किसी न किसी बहाने चला
जाता। निखिल से पता चला वो उसके मामा की बेटी है । 
  
रोहित जब भी निखिल से
मिलने आता , शालिनी भी किसी न किसी बहाने उन दोनों के पास आ जाती। रोहित और शालिनी
छुपकर एक दूसरे को देखते रहते । 
“तेरी दुल्हन” , माँ के कहे ये शब्द रोहित और शालिनी को बरबस ही
मुस्कराने पर मजबूर कर देते। धीरे धीरे दोनों ने एक दूसरे से औपचारिक बातचीत शुरू
की । शादी की भीड़भाड़ से बचने के लिए वो छत पर चले जाते। देर तक बातें करते रहते। 
शालू !, किसी
ने पुकारा तो शालिनी उठते हुये राहुल का हाथ पकड़कर चुटकी बजाते हुये हँसकर  बोली, ”जाना मत , मैं बस यूँ आई ।” कहते हुये नीचे की तरफ दौड़ गई ।
शादी का दिन नजदीक आ
चुका था , मेहमानों की भीड़भाड़ के चलते दोनों युवा मिलने की जगह तलाशते रहते थे। 
आखिरकार शादी का दिन
भी आ गया और दुल्हन की विदाई का भी । दुल्हन की विदाई के दूसरे दिन मेहमान भी जाने
लगे और उनके साथ ,रोहित की "दुल्हन" भी विदा होने लगी। रोहित एक तरफ खड़ा शालिनी
को अपने रिश्तेदारों के साथ जाते हुये देखता रहा। शालिनी की निगाहें रोहित को तलाश
रही थी। 
नजरें मिली ,
दोनों की आँखों में नमी साफ देखी जा सकती थी। 
 
वक़्त गुजरता गया ।
मगर रोहित शालिनी को नहीं भुला पाया। वो शालिनी का इंतज़ार करता रहा। साल-दर-साल
गुजरते गए । उसने शालिनी के प्रति अपने आकर्षण का जिक्र किसी से नहीं किया , यहाँ
तक की अपने दोस्त निखिल को भी कुछ  नहीं बताया ।
पढ़ाई पूरी करने के बाद रोहित को एक सरकारी नौकरी मिल गई। नौकरी लगने के बाद रोहित
की माँ ने शादी के लिए लड़कियां देखनी शुरू की मगर रोहित किसी ना किसी बहाने टालता
रहा। वो माँ को नहीं कह पाया की माँ , “मेरी दुल्हन तो आपने बचपन मे ही तलाश ली थी ,फिर अब किसकी तलाश है ? “
सरपट दौड़ते वक़्त के
एक हादसे में उसकी माँ भी चल बसी । पिता तो बचपन मे ही चल बसे थे।
सालभर मे एक बार शहर से अपने गाँव आता तो निखिल के घर जरूर जाता। निखिल की माँ से
उसे अपनी माँ सा प्यार मिलता था। निखिल की माँ भी उसे शादी करने को कहती रहती मगर
वो हँसकर टाल देता। 
“अब चालीस को पार कर चुका , फिर क्या बुढ़ापे मे शादी रचाएगा ?”, निखिल की माँ
डांटकर कहती। 
“कर लूँगा काकी , अभी कौन सी जल्दी है”, वो बीमार सी हंसी हँसकर बात
को उड़ा देता। 
काकी को देखकर रोहित
ने चरण-स्पर्श करके काकी का आशीर्वाद लिया और बरामदे मे रखी कुर्सी पर
बैठ गया। काकी भी उसके पास बैठ गई और बातें करने लगी। तभी घर के अंदर से एक युवती
आई जिसे देखकर रोहित उठ खड़ा हुआ और बोला ,”शालू !” 
युवती ने रोहित को
देखा और फिर काकी की तरफ देखकर बोली ,”हाँ दादी माँ , आपने बुलाया ।” 
“अरे हाँ,
बेटी ये रोहित है निखिल का दोस्त , तुम इसको चाय नाश्ता दो तब तक मैं बगल वाली आंटी से आम का अचार लाती हूँ ,
इसको बहुत पसंद है । काकी उठकर बाहर चली गई ।  
“आप बैठिए, मैं बस यूँ लाई”, युवती ने रोहित की तरह देखते हुये
हँसकर चुटकी बजाई खिलखिलाती हुई  घर के
अंदर चली गई।
रोहित बूत बना खड़ा
सोचता रहा , उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।  
काकी पड़ोस से आ चुकी
थी। तब तक युवती भी चाय लेकर आ गई तो रोहित ने युवती की तरफ इशारा करते हुये पूछा ,”काकी
ये ..... ? “
“बेटा ये निखिल के मामा की बेटी, शालिनी की बेटी है।  बिलकुल माँ
पर गई है। मुझे “दादीमाँ “ कहती है । मगर अभागी है , इसके
जन्म के वक़्त ही शालिनी की मौत हो गई थी । 
रोहित के कानों में
सीटियाँ बजने लगी,
वो भारी कदमों से अपने घर लौट आया । अपना
सामान उठाकर जैसे ही शहर जाने के लिए घर से बाहर आया सामने उस युवती को खड़े देखकर
सकपका गया। 
“तुम ?”, रोहित से पूछा ।
दादी माँ आपको खाने
के लिए बुला रही है । 
नहीं ,मुझे अचानक जाना पड़ रहा है , आंटी को बोल देना ।
युवती रोहित के साथ साथ चलने लगी। ,“आपने मेरी मम्मी को देखा था ? कैसी दिखती थी वो ?”
रोहित अपने आंसुओं को
रोकता हुआ शहर जाने वाले रास्ते की तरह बढ़ गया। 
- "विक्रम"
 
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