वक़्त का बादल
फटकर गुजर गया
हम दोनों के दरमियाँ ..
ले गया बहाकर
अधबुने ख़्वाब और
दे गया अंतहीन दूरिया..
मगर....
तुम इंतज़ार मे रहना ,
में आऊँगा,
एक दिन लौटकर,
लाऊँगा खोजकर
उन भीगे ख्वाबों को,
ख़यालात, जज़्बात,
और एहसासात की
आंच मे सुखाकर,
हम फिर से बुनेंगे
वो अधबुने ख़्वाब....
“विक्रम”
हम फिर से बुनेंगे
जवाब देंहटाएंवो अधबुने ख़्वाब....
वाह...