शनिवार, अगस्त 15, 2015

अधबुने ख़्वाब

वक़्त का बादल
फटकर गुजर गया
हम दोनों के दरमियाँ ..
ले गया बहाकर
अधबुने ख़्वाब और
दे गया अंतहीन दूरिया..
मगर....
तुम इंतज़ार मे रहना ,
में  आऊँगा,
एक दिन लौटकर,
लाऊँगा खोजकर
उन भीगे ख्वाबों को,
ख़यालात, जज़्बात,
और एहसासात की
आंच मे  सुखाकर,
हम फिर से बुनेंगे
वो अधबुने ख़्वाब....


“विक्रम”

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