उम्र के उन खास
लम्हों की वसीयत,
मैंने अतीत की तहों मे
समेटकर रखी है,
गाहे बगाहे,
यादों की चिमटी से
परतों को उठाकर,
देख लेता हूँ की कहीं,
उसमें कोई
इजाफ़ा तो नहीं हो रहा .....
मुझे इजाफ़ा नहीं,
ख़ालिस वसीयत चाहिए
उम्र के
उन खास लम्हों की
ख़ालिस वसीयत
ख़ालिस !
-"विक्रम"
हिंदी दिवस पर शुभकामनाऐं ।
जवाब देंहटाएंसुंदर ।
जब तक जिन्दगी का साथ है इनमें इजाफा होता ही रहेगा
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता :)