मुंडेर के दोनों ओर
धूप में फैला दिया है
तुम्हारी अचैतन्य ओर
सीलनभरी यादों को ,
ज़हन मे क्रमबद्ध
अभिलिखित है वो
सिलसिले,जो
आतुर है पुनरारंभ को ।
मासूम से बच्चे की मानिंद
हुलस कर, आ लगती हैं
गले,कुछ उनींदी यादें ।
जन्म-जन्मांतर तक
अनुबंधित है
तुम्हारी
यादें.....
"विक्रम"