गुजरे वक़्त की, 
अलमारियों में
रखी तेरी यादों की
ढेर सी किताबों
में, किसी एक से , 
जब कभी कुछ 
शब्द अकुलाकर
सफ़ों से बाहर 
आकर मुझसे 
मेरे यूँ 
बिन बताएं चले
आने का  
सबब पूछते हैं
तो  मैं निरुत्तर-सा
उन शब्दों को 
खामोशी से यथास्थान 
रख देता हूँ।
“विक्रम”
