ब्लॉग का नाम मैने अपने गाँव (गुगलवा-किरताण ) के नाम पे रखा है ,जो सरकार की मेहरबानी से काफी पिछड़ा हुआ गाँव हैं |आज़ादी के इतने बरसों बाद भी बिजली,पानी ,डाकघर , अस्पताल जैसी सुविधाएँ भी पूर्णरूप से मय्यसर नहीं हैं. गाँव के सुख दुःख को इधर से उधर ले जाता हूँ , ताकि नेता को दया आ जाये | वैसे नेता लोगों से उम्मीद कम ही है इसलिए मैने अपने गाँव (Guglwa) का नाम Google से मिलत जुलता रखा है , ताकि Google की किस्मत की तरह Googlwa की किस्मत भी चमक जाये
शनिवार, नवंबर 24, 2012
मंगलवार, नवंबर 13, 2012
मिठाई
“तुम !” , डॉक्टर ने उसे पहचानते हुये कहा। “तुमने तो दो हफ्ते पहले खून दिया था ना? ”
“जी... हाँ डॉक्टर साहब”, बुधिया ने दीनता से मुस्कराकर हाथ जोड़ते हुये कहा ।
“लेकिन..... तुम इतनी जल्दी दुबारा खून नहीं दे सकते”
“साहब , दया कीजिये , मेरा खून देना जरूरी है । मुझे पैसों की सख्त जरूरत है। “ , बुधिया ने डॉक्टर के पैरों की तरफ हाथ बढ़ाते हुये कहा।
“नहीं” ,डॉक्टर ने बिना उसकी तरफ देखे इंकार ए सिर हिलाते हुये कहा।
“.....”,बुधिया ने डॉक्टर के पैरों के पास बैठते हुये हाथ जोड़कर लगभग रो देने वाले अंदाज मे विनती की।
“लेकिन मे ठीक हूँ , देखिये “, बुधिया ने खड़े होकर अपना सीना आगे की तरफ निकालकर ताकत दर्शाते हुये कहा ।
डॉक्टर ने नर्स की तरफ उसका खून लेने का इशारा किया । इशारा पाते ही बुधिया मुस्कराता हुआ नर्स के पीछे पीछे चल पड़ा।
खून देने के बाद काउंटर से पैसे लेते वक़्त बुधिया के चेहरे पे मुस्कान और गहरी हो गई और अस्पताल से बाहर आकार तेज़ कदमों से मिठाई की दुकान की तरफ बढ़ गया। सुबह जब आस पड़ोस मे एक दूसरे के घरों मे दिवाली की मिठाइयों का आदान प्रदान हो रहा था तो उसके तीन से भूखे बच्चे ललचाई नजरों से उन्हे देख रहे थे ।
/AK
-विक्रम
सोमवार, नवंबर 05, 2012
बेटी
“तूँ किससे शादी करेगी?” , नन्हें रिंकू ने अपने साथ झूले पे बैठी निक्की से पूछा।
“मेँ तो तुझसे ही शादी करूंगी”, मासूम निक्की ने बेपरवाही से जवाब दिया।
नन्हा रिंकू उसका जवाब सुनकर खामोश हो गया। दोनों बच्चे पार्क मे बने झूले पे झूल रहे थे। आज सामने वाले शर्मा जी के लड़की की शादी थी। चारों तरफ बहुत गहमा गहमी थी। बारात आने के बाद बैंड बजे का शोर शराबा लगातार तेज़ होता जा रहा था।
“आज रश्मि दीदी खेलने क्यों नहीं आई ?”, रिंकू ने निक्की से पूछा।
“आज रश्मि दीदी की शादी है ना , इसीलिए नहीं आई ”, निक्की ने कहा।
“क्या शादी के बाद वो हमारे साथ खेलने आएंगी ?”
“बुद्दू !, शादी के बाद वो दूर चली जाएंगी”
“कहाँ ?”
“अपने दूल्हे के साथ”, निक्की का जवाब सुनकर नन्हा रिंकू खामोश हो गया।
“लेकिन मेँ तो तुम्हारे साथ दूर नहीं जा पाऊँगा, मम्मी जाने नहीं देगी”,कुछ देर की खामोशी के बाद रिंकू ने कहा।
“लेकिन तब तक तो तुम बड़े हो जाओगे और बड़े होने के बाद मम्मी पापा कहीं भी आने जाने को मना नहीं करते। “
नन्हा रिंकू फिर से निक्की के तर्क पर खामोश हो गया।
“शर्मा जी ने अपनी इकलोती बेटी की शादी मे अपना प्रोविडेंट फंड और जमा पुंजी का सब पैसा लगा दिया था। दूल्हा अजय डॉक्टर था। शर्मा जी की लड़की रश्मि एक स्कूल मेँ पढ़ाती थी। शर्माजी काफी धार्मिक पृवर्ती के इंसान थे इसीलिए कॉलोनी मे उनकी अच्छी प्रतिष्ठा थी।
दिनभर शादी के कार्यकर्मो मे व्यस्त रहे शर्माजी बेटी की विदाई के वक्त बच्चे की तरह सुबक पड़े। रश्मि उनकी बेटी ही नहीं बल्कि एक दोस्त जैसी थी। जब रश्मि 5 साल की थी तभी उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई थी। परिवार वालों के लाख समझाने पर भी शर्माजी ने दूसरी शादी नहीं की। उन्होने रश्मि को माँ बनकर पाला था। जवान होने पर रश्मि घर की ज़िम्मेदारी मे पिता का हाथ बंटाने लगी। वो अपने पिता का भी पूरा ख्याल रखती थी। वो एक माँ की तरह अपने पिता की देखभाल करती थी। जब कब शर्माजी काम की अधिकता के चलते वक़्त पे खाना नहीं खा पाते तो उन्हे रश्मि के गुस्से का सामना करना पड़ता। रश्मि के डांट-डपट मेँ शर्माजी को कभी अपनी स्वर्गवासी पत्नी तो कभी अपनी माँ की झलक मिलती , जब कभी वक़्त पे खाना ना खाने पर उनकी माँ या उनकी पत्नी उन्हे डांटती थी।
भारी मन से बाप-बेटी समाज और प्रकृति के बनाए नियम के तहत एक दूसरे से बिछड़ गए। एक बाप के घर को वीरान करके बारात उसी बैंड बाजे के साथ चली गई जिस बैंड बाजे के साथ कुछ देर पहले खुशियाँ लेकर आई थी।
शादी के दो माह बाद रश्मि पिता से मिलने आई । हरदम चहकने वाली रश्मि अब काफी खोई खोई सी लग रही थी। पिता के लाख पूछने पर भी उसने बस ये कहकर बात टाल दी की सफर की थकावट की वजह से ऐसा हैं। एक दिन ठहरकर रश्मि वापिस अपनी ससुराल चली गई , मगर बूढ़े पिता ने बेटी की आंखो मे छुपे दर्द को पढ़ लिया था।
दो दिन बाद फिर से रश्मि आई तो शर्मा जी को एहसास हो गया की कुछ गड़बड़ है। उन्होने बेटी से पूछा मगर रश्मि फिर टाल गई और बोली को स्कूल मे हिसाब के कुछ पैसे बाकी थे वो लेने आई हूँ। शर्मा जी बेटी की आवाज मे छुपे दर्द को अनुभव कर रहे थे।
“ठीक है कल मेँ भी चलता हूँ तूमहरे साथ तुम्हारे स्कूल, अभी थोड़ा बाजार से सामान लेता आऊं”, कहकर शर्माजी साइकिल लेकर बाहर निकल गए।
वापिस आए तो उनकी लाड़ली उन्हे सदा के लिए छोड़कर जा चुकी थी। रश्मि का शरीर पंखे से लटक रहा था। नीचे बिस्तर पर स्टैम्प पेपर के साथ सुसाईट नोट पड़ा था। ससुराल वाले रश्मि पे लगातार दवाब बना रहे थे की अपने पिता का मकान अजय के नाम करे ताकि अजय वहाँ डिस्पेन्सरी खोल सके।
पूरी कॉलोनी मे शोक की लहर दौड़ गई। जिसने भी सुना वो शर्मा जी के घर की तरफ दौड़ पड़ा।
रिंकू आज झूले पे अकेला ही था। निक्की ने उसे कह दिया की वो अब लड़को के साथ नहीं खेलेगी।
“विक्रम”
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