रविवार, सितंबर 16, 2012

रास्ते का पत्थर


बहु बेटों के  तानों से परेशान  होकर अस्सी साल के  रामधन काका अक्सर सड़क के किनारे खड़े एक बूढ़े बरगद के तने के चारों और बने चबूतरे पे अपनी इकलोती  बैसाखी को सिरहाने से लगाकर लेटे जाते थे | रामधन काका को उस बूढ़े बरगद से पितृवत्  सुख मिलता था | 

वो पास ही खड़े एक बारह तेरह साल के स्कूली बच्चे को देख रहे थे जो  अपनी पीठ पर स्कुल का बैग लटकाए अपनी बस का इन्तजार कर रहा था | वक़्त बिताने के लिए बच्चा सडक के किनारे  पड़े पत्थर  के एक गोल से टुकड़े  से  फुटबाल की तरह खेलने लगता है  | कुछ समय बाद  उसकी  बस आई और वह पत्थर के उस टुकड़े को वहीँ रोड़  के बीच में  छोड़कर अपनी बस में चला गया |

इसके कुछ समय पश्चात एक  युवक उधर से आता है और पत्थर  के उस टुकड़े से ठोकर खाकर गिरने से बाल बाल  बचता है | युवक पत्थर के टुकड़े को देखकर कुछ बुदबुदाया  और  अपनी चोट को सहलाता हुआ आगे बढ गया | दूसरी तरफ से आने वाले एक प्रौढ़  ने जब उस युवक को पत्थर से टकराने के बाद गिरते देखा तो वह  प्रोढ़ सम्भल गया और पास आने पर  उस पत्थर से बचकर निकल  गया | 


गिरते पड़ते , बचते  बचाते  का ये सिलसिला देर तक चलता रहा| किनारे पर पड़े रहने वाला पत्थर आज ठोकरे और गालियाँ  खाते खाते  ऊब चूका था|रामधन काका को पत्थर में अपना अक्स नजर आने लगा|थक हार कर रामधन काका  अपनी बैसाखी के सहारे उठे ...,पत्थर के पास पहुंचकर अपनी इकलोती टांग से उसे लुढका कर किनारे किया और वापिस आकर फिर से लेट गये... |

 -  विक्रम शेखावत Publish Post

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया बोध कथा|
    लोग मुसीबत से बचते रहने के उपाय तो खोजते है पर उस मुसीबत को हटाने के लिए कोई उपाय नहीं करता|
    वो तो कोई रामधन काका जैसा अनुभवी ही कर सकता है|

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  2. vikarm ji blog pr ak bahut hi rochak katha ka prastutikaran kiya hai eske liye badhai ..ramdhan kaka ka charitr urja de rha hai |

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  3. सभी पत्थरों को एक दिन रामधन काका हो जाना होता है ! वाह !

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