शनिवार, फ़रवरी 12, 2011

पानी रे पानी ...!


१२-०२-२०११ ( बैंगलोर)

अभी कल ही एक दोस्त का फ़ोन आया बोला यार इधर (गाँव) में तो पिछले १५ दिन से पानी नहीं  आया बहूत परेशानी है , तुम लोग अच्छा हो जो शहर में रहते हो बिजली,पानी की समस्या तो नहीं
होती वहां मेने सोचा , एक वो जमाना था जब लोग गांवों की आबो - हवा को पसंद करते थे और गाँव के जीवन की तुलना सवर्ग सुख से करते थे.

मगर आज ? सब कुछ जैसे अतीत में कहीं दफ़न हो गया हो सदा के लिए कभी कभी सोचता हूँ
इसके लिए कोन जिम्मेदार है ? आज या गुजरा हुआ कल ? या फिर ये आने वाले कल का परिवर्तन है | किसी ने कहा की जीवन के लिए परिवर्तन जरुरी है अन्यथा हमें भी डायनासोर की तरह याद किया जायेगा फिर सोचता हूँ की आखिर कितना परिवर्तन होना चाहिए और कितने समय में ? धीरे धीरे या अचानक ? कुछ पल के लिए ही सही मगर क्या हम , ३० या ५० साल पहले के कुछ क्षण अपने आज के  जीवन से चुराकर जी सकते हैं ? काश ऐसा होता

कितना अच्छा होता अगर ये जीवन एक कंप्यूटर Wordpad की तरह होता और हम अपने हिसाब
से कोई भी लाइन (पल) इधर से उधर कर लेते , किसी भी पल अपना मनचाहा पल जीने के  लिए उस लाइन में कर्सर (cursor ) ले जाते और .......खैर में भी कहां से कहाँ पहुच  गया , पानी से जीवन की बाते करने लगा . वैसे देखा जाये तो पानी ही जीवन है


हाँ तो में गाँव में पानी का रोना रो रहा था , इसे रोना ही कहा जायेगा कयोंकि आज कल पानी रोने से ही आता है "आँखों में" मेरे गाँव में हर इंसान कुछ भी कर सकता है सिवाए पानी का जुगाड़ करने के बेचारा पानी लाये भी तो कहाँ से ? जमीन का पानी सरकार ने निकाल निकाल  कर आस पास के गांवो में सप्लाई कर दिया, पिछले २० सालों से जमीन का दोहन लगातार हो रहा है मगर किसी को चिंता नहीं आज जब पानी सर से ऊपर निकलने की जगह पैर के नीचे  से निकल गया तो होश आया है

हमें अपने बुजर्गो से जो मिला हम उसी को खाने में लग गए बशर्ते उसे और बढाने के अब हम अपनी आने वाली पीढी को क्या देंगे ? प्रदुषण , भूख-प्यास , सीमित संसाधन बस माना की हमसे पहले वाली पीढी का जीवन स्तर इतना ऊँचा नहीं था मगर जीवन स्वस्थ और लम्बा तो था , आज की तरह दुनिया भर की बीमारी तो नहीं थी जीवन कम हो मगर स्वस्थ हो तो अच्छा होता है ना की बीमार और घुट घुट कर जीने वाला अंतहीन जीवन...

"विक्रम"

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